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विनयाधिकारः।
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स्त्रीने पिण धर्माचार्य कही जै। तथा सासू बहुकने व्रत आदरे तथा सेठ गुमास्ताकने व्रत आदरे तो तिणने पिण धर्माचार्य कहिजे".अने जिणपासे धर्म सीखा तिणने पंदना करणी कहे तिणरे लेखो पाछे कह्या ते सवने वन्दना नमस्कार करणी" (भ्र० पृ० २७७)
इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक)
ठाणाङ्ग सूत्रके छठे ठाणेमें कहा है कि पुरुष, कारणवश साध्वीसे दीक्षा ग्रहण कर सकता है पर वह दीक्षा ग्रहण करके साध्वीको वन्दन नमस्कार नहीं करता क्योंकि साध्वीको वन्दन नमस्कार करना साधुके कल्पसे विरुद्ध है उसी तरह पिता पुत्र से श्वश्रू पुत्रवधू से, और सेठ गुमास्तासे धर्मोपदेश ले सकते हैं पर लोक विरुद्ध होनेसे पिता पुत्र को श्वश्रू पुत्र वधूको और सेठ गुमास्तेको वन्दन नमस्कार नहीं करते किंतु जिस धर्मोपदेशक श्रावकको वंदन नमस्कार करनेसे कोई लोकाचारका विरोध नहीं होता उसको वन्दन नमस्कार करनेमें कोई दोष नहीं है किंतु धर्म है अतः धर्मोपदेशक पुत्र, वधू, और गुमास्ताको पिता, श्वश्रू, और सेठ नमस्कार नहीं करते यह दृष्टान्त देकर सभी धर्मोपदेशक श्रावकको वन्दन नमस्कार करने का निषेध करना मिथ्या समझना चाहिये।
(बोल १२ वां समाप्त)
( इति विनयाधिकारः )
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