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सद्धर्ममण्डनम् ।
यह पाठ पूर्ण भद्र नामक यक्षके लिये आया है। इसमें पूर्ण भद्र नामक यक्षके लिये "कल्याणं मङ्गल देवयं चेझ्यंयह विशेषण आया है। इसलिये ये विशेषण साधु
और तीर्थंकरों के लिये ही आते हों यह नियम नहीं है इसलिये इन विशेषणोंका नाम ले कर भगवतीके १५ वें शतकके मूलपाठमें माहन शब्दका श्रावक अर्थ होने का निषेध करना अज्ञानमूलक समझना चाहिये।
(बोल ११ वां समाप्त) (प्रेरक)
भ्रमविध्वंसनकार उत्ताध्ययन सूत्रकी बहुतसी गाथाओं को लिख कर उन की साक्षीसे माहन शब्दका एक मात्र साधु ही अर्थ होना बतलाते हैं श्रावक नहीं।
इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक)
उत्तराध्ययन सूत्रकी गाथाओंमें जो "माहन" या ब्राह्मणका लक्षण लिखा है वह लक्षण केवल साधुमें ही मिलता हो श्रावकमें न मिले यह बात नहीं है । जैसे कि उत्तगध्ययन सूत्रमें माहन (ब्राह्मण ) का लक्षण यह लिखा है
"समयाए समणो होई । वंभचेरेण वंभणो। नाणेणय मुणि होई। तवेणं होई तावसो"
(उत्तराध्ययन सूत्र) अर्थ :
__अर्थात् सब जीवोंमें समता रखनेसे श्रमण होता है और ब्रह्मचर्य धारण करनेसे ब्राह्मण (माहन) होता है । तथा ज्ञानसे मुनि और तपस्या करनेसे तापस होता है।
यहां ब्रह्मचर्या धारण करनेसे ब्राह्मण (माहन) होना कहा है और श्रावक भी प्रक्षचा धारण करते हैं जैसे कि अम्वडजी और उनके शिष्य, श्रावक हो कर भी पूर्ण ब्रह्मचारी थे। तथा दूसरे श्रावक भी देशसे ब्रह्मचर्य को धारण करते हैं इस लिये इस गाथामें कहा हुआ माहन (ब्राह्मग ) का लक्षण श्रावकमें भी मौजूद है । अतः उत्तराध्ययन सूत्रकी गाथाओंका दाखला देकर एकमात्र साधुको ही माहन कहना और श्रावकको माहन होनेका निषेध करना अज्ञान समन चाहिये । (प्रेरक)
भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ २७७ के ऊपर लिखते हैं कि
"इम जो धर्माचार्य हुवे तो पुत्रकने पिता श्रावकरा व्रतधारे तो तिणरे लेखे पुत्रने धर्माचार्य कही जै इम हिज स्त्री कने भार श्रावकना व्रत धारे तो तिणरे लेखे
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