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सद्धर्ममण्डनम् ।
___ यदि कहो कि भगवान्के जन्म समयमें देवता लोग बहुतसा आरंभ समारंभ भी करते हैं वह जैसे सावध है उसी तरह उस समयका वन्दन नमस्कार भी सावध है तो फिर केवल ज्ञान होने पर भी भगवान्को वन्दना नमस्कारार्थ देवता लोग आते हैं और मारंभ समारंभ करते हैं फिर उस आरंभ समारंभकी तरह उस समयका वन्दना नमस्कार सावध क्यों नहीं माना जाता ? अतः जैसे केवल ज्ञान होने पर देवता लोगोंके गमना गमन आदि रूप क्रियाके सावध होने पर भी भगवान्का वन्दना नमस्कार सावध नहीं होता उसी तरह जन्मोत्सवमें भी आरंभ समारंभके सावध होने पर भी भगवानको वन्दन नमस्कार करना सावध नहीं होता किन्तु धर्म होता है इस प्रकार शास्त्रीय प्रमाणसे अपनेसे अधिक गुणवान सम्यग्दृष्टि का शुश्रूषा विनय करना धर्म सिद्ध होता है पाप नहीं । अतः साधुके सिवाय दूसरोंके विनयको सावध कहना एकान्त मिथ्या समझना चाहिये।
बोल ६ समाप्त (प्रेरक)
भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ २८१ के ऊपर लिखते हैं कि "इहां चक्र अपनो सुण्यो तिहां भरतजी इसो विनय कीधो पछे चक्र कने आवी पूजा कीधी । ते संसाररी रीते पिण धर्म हेते नहीं। तिम अम्वडने चेलां पिण आपरो निज गुरु जाण गुरुनो रीति सांचवी पिण धर्म न जाण्यो" इत्यादि। (भ्र०पृ०२८१)
इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक)
भरतने जो चक्रकी पूजा की थी उसका दृष्टान्त अम्वडजीके साथ देना अज्ञान है क्योंकि चक्र तो प्रत्यक्ष ही स्थावर एकेन्द्रिय और मिथ्यात्वी है। उसकी पूजा करना मिथ्यात्वीकी पूजा करना है जो सम्यग्दृष्टिके लिये धर्मका कारण नहीं है अपितु उसके प्रतका अतिचार है। परन्तु अम्वडजी बारह व्रत धारी श्रावक और सम्यग्दृष्टि थे। उनको वन्दना नमस्कार करना सम्यग्दृष्टिको वन्दना नमस्कार करना है । अतः वह चक्र पूजाकी तरह लौकिक रीतिके पालनार्थ नहीं है किन्तु धर्मार्थ है। अत: चक्र पूजाका दृष्टान्त देकर अम्वडजीके वन्दन नमस्कारको सावध बतलाना अज्ञान है। (प्रेरक)
श्रावककी सेवा भक्ति करनेसे क्या फल मिलता है। यह सप्रमाण बतलाइये ?
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