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________________ विनयाधिकारः। गान्तेवासी नाम मेगेणो उवट्ठावणान्तेवासी धम्मंतेवासो। पत्तारि अन्तेवासी पं० त० उद्दसणान्तेवासी धम्मतेवासी नाम मेगे नो वायणान्तेवासी धर्मतेवासी" (ठाणांग ठाणा ४ उद्देशा ३) अर्थ: आचार्य चार प्रकारके होते हैं । जो दीक्षा देते हैं परन्तु छेदोपस्थापन चारित्र नहीं देते । वे प्रव्राजनाचार्या कहलाते हैं जो छेदोपस्थापन चारित्र देते हैं पर दीक्षा नहीं देते वे उपल्यापनाचार्या कहलाते हैं जो दीक्षा तथा छेदोपस्थापन चारित्र दोनों ही देते हैं वे उभयावाऱ्या कहलाते हैं। तथा जो दीक्षा छेदोपस्थापन चारित्र नहीं देते किन्तु धर्मोपदेश मात्र देते हैं वे धर्माचार्य कहलाते हैं। फिर दूसरी तरहसे आचार्य चार प्रकारके होते हैं। जो अङ्गों को पढ़ने योग्य बना देते हैं परन्तु पढ़ाते नहीं हैं वह उद्देशनाचार्या कहलाते हैं जो अङ्गोंको पढ़नेके योग्य नहीं बनाते परन्तु अङ्गों को पढ़ाते हैं वे वाचनाचार्या कहलाते हैं। जो पूर्वोक्त दोनों ही कार्य करते हैं वह उभयाचार्य कहलाते हैं। जो अङ्गोंको पढ़ने योग्य बनाते हैं और न अङ्गोंको पढ़ाते ही हैं किन्तु धर्मका उपदेश देते हैं वे धर्माचार्य कहलाते हैं। इसी प्रकार शिष्योंके भी चार भेद कहे हैं। जो एक आचार्यसे दीक्षा मात्र ग्रहण करता है पर उन्हींसे छेदोपस्थापन चारित्र नहीं ग्रहग करता वह प्रधाजनान्तेवासी कहलाता है। जो छेदो पस्थापन चारित्रका ग्रहण किसी एकसे करता है परन्तु दीक्षा ग्रहण नहीं करता वह उपस्थापना न्सेवासी कहलाता है जो दोनों ही एक आचार्यसे ग्रहण करता है वह उसका उभयान्तेवासी कहलाता है। जो न तो किसी एक आचार्यसे दीक्षा ग्रहण करता है और न छेदोपस्थापन चारित्र ग्राम करता है किन्तु धर्मोपदेश मात्र लेता है वह उसका धर्मान्तेवासी कहलाता है। बिभी मिष्य चार प्रकार के होते हैं। जो जिससे भोंको पढ़नेकी योग्यता प्रास करता है परन्तु भङ्गोंको उससे पढ़वा नहीं वह उसका उद्देशनान्तेषासी कहलाता है जो जिससे अङ्गोंको पढ़ता है पर उनके पढ़नेकी योग्यता दूसरेसे प्राप्त किया होता है वह उसका पानवानलेवासी कालाता है। जो दोनो ही कार्य एक ही आचार्यसे करता है वह उसका उम. बान्तेवासी कहलाता है। जो जिससे न तो अङ्गोंके पढ़नेकी योग्यता ही प्राप्त करता है और न भोको पढ़ता ही है किन्तु धर्मोपदेश मात्र लेता है वह उसका धर्मान्तेवासी कहलाता है। यहां ठाणाङ्गके मूल पाठमें जो न तो दीक्षा देता है और न छोपस्थान चारित्र देता है तथा जो न तो अङ्गोंको पढ़ने योग्य ही बनाता है और न अङ्गोंको पढ़ाता ही है किन्तु धर्मका उपदेश मात्र करता है उसे धर्माचार्य कहा है। इसलिये जो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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