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सद्धर्ममण्डनम् ।
कियो । तथा पोखली पिण शंखकनाथी पाछां जाता विनय न कियो। से मांटे संसारनी सेते ए विनय कियो छ ।”
(भ्र० पृ० २७६) - इसका क्या समाधान ?
(प्ररूपक) .. .....भगवतीसूत्रके मूलपाठमें यद्यपि पोखलीश्रावकको जाते समय उत्पलाका नमस्कार करना, तथा शंखके पाससे जाते समय शंखको पोखलीका नमस्कार करना लिखा हुआ नहीं है तथापि नहीं लिखनेसे यह नहीं निश्चय किया जा सकता कि उत्पलाने जाते समय पोखली, और पोखलीने जाते समय रंखको नमस्कार नहीं किये थे, क्योंकि उपासक दशांगसूत्रमें गोतमस्वामीको आतेसमयमेंही आनंदश्रावकसे नमस्कार किये जानेका उल्लेख है जाते समय नमस्कार करनेका कथन नहीं चला है तथा रेवती धर्मपत्नी श्राविकाके सीह अनगारको आते समयमें ही नमस्कार करनेका उल्लेख है आते समयका उल्लेख नहीं है इस लिये जैसे यह नहीं कहा जा सकता कि आनन्द श्रावकने जाते समय गोतम स्वामीको नमस्कार नहीं किये थे तथा रेवती श्राविकाने जाते समय सीह अनगारको वन्दन नमस्कार नहीं किये थे उसी तरह यह भी नहीं कहा जा सकता कि उत्पलाने जाते समथ पोखलीको और पोखलीने विदा होते समय शंखको वन्दन नमस्कार नहीं किये थे। अतः जाते समयके वन्दन नमस्कारका उल्लेख नहीं होनेसे उत्पलाने जाते समयमें पोखलीको और पोखलीने जुदा होते समय शंखको नमस्कार नहीं किये थे यह निश्चय करना भ्रमविध्वंसनकारका निर्मूल है।
जाते समयके वन्दन नमस्कारका उल्लेख नहीं होने पर भी जैसे यह कहा जा सकता है कि आनन्द श्रावकने गोतम स्वामीको और रेवती श्राविकाने सीह अनगारको जाते समय भी वन्दना नमस्कार किये होंगे उसी तरह यह भी कहा जा सकता है कि उत्पलाने पोखलीको और पोखलीने शंखको जाते समय भी वन्दन नमस्कार किये होंगे। अस्तु-भ्रमविध्वंसनकारके अनुयायियोंसे पूछना चाहिये कि उत्पला श्राविकाने आते समय पोखलीको और पोखलीने शंखके पास जाते समय जो शंखको वन्दना नमस्कार किये थे यह लौकिक रीतिके पालनार्थ किये थे धर्मके निमित्त नहीं इसमें क्या प्रमाण है ? क्योंकि मूल पाठमें जैसे साधुके वन्दन नमस्कारका उल्लेख पाया जाता है उसी तरह पोखली और शंखके भी वन्दना नमस्कार का उल्लेख है वहां यह नहीं कहा है कि साधु वन्दन तो धर्मार्थ है और श्रावककी वन्दना लौकिक रीति पालनार्थ है। ऐसी दशा में तुमने यह निर्णय किस आधार से कर लिया है कि 'उत्पलाने पोखली को और पोखालोने शंखको जो वन्दन नमस्कार किये थे वह लौकिक रीति पालनार्थ किये थे
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