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बोल सातवां पृष्ठ ३७१ से ३७२ तक
ठाणाङ्ग ठाणा ५ उद्देशा २ में श्रावकों के वर्ण बोलनेसे सुलभ बोधी और अवर्ण बोलने से दुर्लभ बोधी होना कहा है अतः श्रावकको अन्नदानादि द्वारा धार्मिक सहायता करनेसे एकान्त पाप करना अज्ञान है ।
बोल आठवां पृष्ठ ३७२ से ३७२ तक
ias और श्राविकाओं के हित, सुख और पथ्य आदि की इच्छा करनेसे सनत्कुमार देवेन्द्र भवसिद्धिसे लेकर यावत् चरम हो गये हैं । भगवती शतक ३ उ० १ बोल नवां पृष्ठ ३७३ से ३७६ तक
साधु या साध्वी को रात में या विकार के समय सर्प काटनेपर क्रमशः गृहस्थ स्त्री और पुरुष द्वारा झाडा दिलाना वृहत्कल्प सूत्रमें लिखा है । आचारांग सूत्रमें कहा है कि गड्ढे आदिमें गिरने की संभावना होनेपर गृहस्थका हाथ पकड़ कर साधु मार्गको पार कर सकता है ।
बोल दशवां पृष्ठ ३७६ से ३७९ तक
साधुकी गले की फांसी काटने तथा आगमें जलते हुए साधुको बाहर निकालनेमें एक पाप कहने वाले निर्द य और शास्त्र विरोधी हैं ।
बोल ११ वां पृष्ठ ३७९ से ३८१ तक
साधु नासिकामें लटकते हुए अर्शको धर्म बुद्धिसे काटने वाले गृहस्थको पुण्य वन्धकी क्रिया लगती है और लोभसे काटने वालेको पाप लगता है ।
बोल १२ वा ३८१ से ३८२ तक
गृहस्थ द्वारा अपने फोड़े आदिके छेदन कगने की इच्छा करना बुरा है परन्तु गृहस्थको धर्मबुद्धिसे साधुके फोड़े आदिका छेदन करना पापका कारण नहीं है ।
sa वैयावृत्य प्रकरणम् ।
अथ विनयाधिकारः ।
बोल १ पृष्ठ ३८३ से ३८५ तक
सम्यग्दृष्टि अपने से अधिक गुण वाले सम्यग्दृष्टिकी और श्रावक अपनेसे श्रेष्ठ श्रावकी तथा ये सभी लोग सम्यग्दृष्टि साधुकी जो सेवा शुश्रूषा करते हैं यह इनका दर्शन विनय समझना चाहिये ।
बोल दूसरा पृष्ठ ३८५ से ३८६ तक
उत्पला श्राविकाने पोखली श्रावकको ओर पोखलीने शङ्ख श्रावकको वन्दन नमस्कार किये थे ।
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