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लेश्याधिकारः।
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इसकी प्रशाखाओंको काट कर हम लोग इसके फल खांय । चौथेने कहा कि हम लोग केवल इसके गुच्छोंको तोड़ लेवें प्रशाखाओंको काटनेकी क्या आवश्यकता है। पांचवेने कहा कि हम लोग इसके फल तोड़ लेवें गुच्छोंको तोड़नेकी क्या आवश्यकता है । छ? ने कहा कि गिरे हुए फलोंको ही खा लेवें फलोंको तोड़नेका कुछ भी प्रयोजन नहीं है। यह एक दृष्टान्त है। इसमें पहला पुरुष जो वृक्षको जड़से काटनेकी सलाह देता है वह कृष्ण लेश्याके परिणाममें विद्यमान है। जो बड़ी शाखाओंको काटनेकी राय देता है वह दूसरा पुरुष नील लेशी है। प्रशाखाओंको काटनेकी राय देता हुआ तीसरा पुरुष कापोत लेशी है। गुच्छाको तोड़नेकी राय देने वाला चौथा पुरुष तेजो लेश्या वाला है। फलोंको तोड़ने की राय देने वाला पांचवां पुरुष पदम लेश्या वाला है। गिरे हुए फलोंके लेनेकी राय देने वाला छट्ठा पुरुष शुक्ल लेश्या वाला है । यह ऊपर लिखी हुई गाथाओंका अर्थ है। इसमें कहा है कि जो गुच्छा तोड़नेकी राय देता है वह तेजो लेश्या वाला है और जो फल तोड़नेकी राय देता है वह पद्म लेशी है, जो गिरे हुए फलोंके खानेकी राय देता है वह शुक्ल लेशी है। यद्यपि ये तीनो पुरुष आरंभ दोषसे रहित नहीं हैं, तथापि ये पहले दूसरे और तीसरे पुरुषकी अपेक्षा बहुत ही अल्पारंभी हैं अत: ये क्रमशः तेजो लेश्या, पद्म लेश्या और शुक्ल लेश्याके स्वामी कहे गए हैं। इसी तरह मूल गुण और उत्तर गुण में दोष लगाने वाले साधु यद्यपि आरम्भ दोषसे मुक्त नहीं हैं तथापि वे अवतियोंकी अपेक्षासे बहुत ही उत्तम निर्मल चारित्री हैं इस लिये इनकी लेश्या विशुद्ध है । जो पुरुष अल्प फलकी प्राप्तिके लिये महान् आरम्भ करता है जैसे जामुनके फलको पानेके लिये पहले पुरुषने जड़ काटनेकी और दूसरेने शाखा काटनेकी और तीसरेने प्रशाखा काटनेकी राय दी थी उसी तरह वह पुरुष भी कृष्णनील और कापोतलेश्या वाला है परन्तु जो अल्प फल पानेके लिये महान् आरम्भ नहीं करता वह कृष्णादि तीन अप्रशस्त भाव लेश्या वाला नहीं है । साधु जन आरम्भ त्यागी पञ्चमहाव्रतधारी और विवेकी होते हैं वे अल्प फलकी प्राप्तिके लिये कदापि महान आरम्भ नहीं करते अतः उनमें कृष्णादि तीन अप्रशस्त भाव टेश्यायें नहीं होती। ____ऊपर बताये हुए दृष्टान्तका भाव यह नहीं समझना चाहिये कि तेज: पद्म और शुक्ल लेश्या वाले सभी जीव आरंभी ही होते हैं । जो मुनि उत्कृष्ट परिणामके धनी होते हैं वे बिलकुल आरंभके त्यागी होते हैं। शुक्ल लेश्या वाले पुरुष वीतरागी भी होते हैं। उक्त दृष्टान्तमें जघन्य श्रेणीके तेजः पद्म और शुक्ल लेश्या वाले कहे गये हैं इसलिये इस दृष्टान्तसे सभी तेजः पद्म और शुक्ल लेश्या वालोंको आरंभी नहीं समझना चाहिये।
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