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________________ २९६ सद्धर्ममण्डनम् । लेश्या फोडे ते पाठ लिखिए छै" इसके आगे लिखते हैं कि "अथ इहां वैक्रिय समुद्यात करितां पांच क्रिया कही तिमहिज ते जू समुद्घात करिता पांच क्रिया जाणवी" यह लिख कर जीतमलजीने जीव विराधना होनेसे उत्कृष्ट पांच क्रिया लगना स्वीकार किया है परन्तु गोशालकको प्राण रक्षा करने के लिये जो भगवान्ने शीतल लेश्या प्रकट को थी उसमें कौन सी जीव विराधना हुई जिससे भगवानको पांच क्रिया लगेगी ? यह बुद्धिमानोंको विचार लेना चाहिये । शोतल लेश्यासे किसी भो जीवको विराधना नहीं होती बल्कि जीवोंको सुख शान्ति होती है फिर शीतल लेश्यामें उक्त पांच क्रियाओंके लगनेकी बात बिलकुल मिथ्या है । पन्नावणा पद ३२ में तेजके समुद्घात होनेसे पांच क्रियाओंका लाना कहा है परन्तु उष्ण तेजो लेश्याके प्रयोगमें ही तेजका समुद्घात होता है शीतल लेश्याके प्रयोगमें नहीं अतः शीतल लेश्याके प्रयोगमें तेजके समुद्घातका नाम लेकर उसमें उत्कृष्ट पांच क्रियाओंके लगने की स्थापना करना मिथ्या है। (बोल ३ समाप्त) (प्रेरक) शीतल लेश्या किसे कहते हैं यह सप्रमाण बतलाइये । ( प्ररूपक) "अगण्य कारुण्यवशादनुप्राह्य प्रानि तेजो लेश्या प्रशमन प्रत्यल शीतल तेजो विशेष विमोचन सामर्थ्यो।" (प्रवचन सारोद्धार) अतिशय दयालुताके कारण दया करने योग्य पुरुषके प्रति तेजो लेश्याको शान्त करने में समर्थ शीतल तेजो विशेषके छोड़ने की शक्तिका नाम 'तेजो लेश्या' है । यह शीतल लेश्याका स्वरूप प्रवचन सारोद्धारमें वतलाया है। इससे स्पष्ट ज्ञात होता है कि जहां उष्ण तेजो लेश्या जलाने का काम करती है वहां शीतल लेश्या शान्तिका कार्य करती है। उष्ण तेजो लेश्या जीव हिंसाके लिये चलाई जाती है और शीतल लेश्या जीव रक्षाके लिये चलाई जाती है। जैसे धूप और छाया, परस्पर एक दूसरेसे विरुद्ध गुण वाले हैं उसी तरह ये दोनों लेश्यायें परस्पर विरुद्ध गुण वाली हैं । अत: उष्ण तेजो लेश्याके छोड़नेसे जीवोंको विराधना होती है और जीव विराधना होनेसे उष्ण तेजो लेश्यामें उत्कृष्ट पांच क्रिया लगती हैं परन्तु शीतल तेजो लेश्यासे किसी जीवकी विराधना नहीं होतो बल्कि उससे जीवकी रक्षा होती है इसलिये जीव विराधनासे उत्पन्न होने वाली पूर्वोक्त क्रियाएं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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