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________________ २८४ सद्धममण्डनम् । होती है अतएव वारह प्रकारकी निर्जराओंमें व्यावच को भी गिनाया है। मुनि तो व्यावच का एक साधन मात्र हैं अतः मुनिका व्यावच भी मुनि वन्दनके समान ही निरवद्य है और वह अपने लिये ही किया जाता है। जैसे वन्दनके लिये की जाने वाली जाने आनेकी क्रिया वन्दनसे भिन्न है उसी तरह मुनिका व्यावचके लिये की जाने वाली क्रिया भी व्यावचसे भिन्न है अतः यक्षोंने हरिकेशी मुनिका व्यावच करनेके लिये जो ब्राह्मण कुमारोंका ताडन किया था उसे मुनि का व्यावच स्वरूप कायम करके सावध बताना और उस के दृष्टान्त से अनुकम्पा को भी सावध कहना अज्ञानियों का कार्य समझना चाहिये। (बोल ३६ वां समाप्त) (प्रेरक) भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ १७७ के ऊपर लिखते हैं "वली केतला एक कहे-गोशालाने भगवान बंचायो ते अनुकम्पा कही छै ते मांटे धर्म छै" तेहनो उत्तर-जो ए अनुकम्पामें धर्म छै तो अनुकम्पा घणे ठीकाने कही छै' . इत्यादि लिख कर बूढ पर कृष्णजीकी और सुलसापर हरिण गमेशी आदि की अनुकम्पाका दृष्टान्त देकर गोशालक पर भगवान की अनुकम्पाको सावद्य बतलाते हैं। इसका क्या समाधान ? . (प्ररूपक) भगवान महावीर स्वामीने गोशालक पर अनुकम्पा करके उसके प्राण बचाये थे इस अनुकम्पाको सावध कहना अनुकम्पाके साथ द्रोह करने वालोंका कार्य है। प्रश्नव्याकरण सुत्रके मूलपाठका प्रमाण दे कर यह बतलाया जा चुका है कि मरते जीव पर दया करके उसकी प्राणरक्षा करना जैनागमका प्रधान उद्देश्य है अतः गोशालकपर अनुकम्पा करके भगवान ने उसके प्राण बचाये थे। इस कार्यको सावध कहना अज्ञानका परिणाम है। यदि कोई कहे कि गोशालकको बचानेके लिये भगवान को शीतललेश्या प्रकट करनी पड़ी थी और शीतललेश्या प्रकट करनेसे जीवोंको विराधना होती है इसलिये भगवान की यह अनुकम्पा निरवद्य नहीं कही जा सकती किन्तु यह सावध है" तो उसे कहना चाहिये कि शीतल लेश्यासे जीवोंको विराधना नहीं प्रत्युत उससे जीवरक्षा होती है इस लिये शीतल लेख्याका नाम लेकर भी गोशालक पर भगवान की अनुकम्पा को Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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