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________________ अनुकम्पाधिकारः। २७३ (प्रेरक) भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ १७० पर ज्ञाता सूत्रका मूल पाठ लिखकर उसकी समालोचना करते हुए लिखते हैं "अथ ईहां धारणी राणी गर्भनी अनुकम्पा करी मन मंगता माहार जीम्या ए अनुकम्पा सावध छै के निरवद्य छै एतो प्रत्यक्ष आज्ञा बाहिरे छे" (भ्र० पृ० १७० ) इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक) भ्रमविध्वंसन कारने जनताको भ्रममें डालनेके लिए साता सूत्रका मूल पाठ अपूर्ण लिखा है इसलिए उसका पूरा पाठ और अर्थ लिखकर इसका समाधान किया जाता है। वह पाठ यह है "तएणं साधारणी देवोतंसि अकालदोहलंसि विणियसि सम्माणियदोहला तस्त गम्भस्स अणुकम्पणट्टयाए जय चिट्ठइ जय आसह जय सुवइ आहारं पियणं आहारेमाणी नोइतित्तं नाइ कहु नाइ कसायं नाइ अंविलं णाइ महुर जं तस्स गन्भस्स हियं :मियं पत्थं तं देसेय कालेय आहारं आहारेमाणी णाइचिन्तं गाइ सोगं गाहदेण्णं णाइ मोहं गाइ भयं णाइ परितासं ववगयचिन्तासोगमोह भयपरित्तासा भोयणछायणगन्धमल्लालंकारेहितं गम्भं मुखं सुखेम बहति" (ज्ञाता अ० १) अर्थ: इसके अनन्तर वह धारिणी रानी अकाल दोहदको पूर्ण करके गर्भकी अनुकम्पाके लिये जयणाके साथ खड़ी होती थी। जयणाके साथ बैठती थी। जयणाके साथ सोती थी। मेधा और आयुको बढ़ाम वाला इंन्द्रियों के अनुकूल नीरोग और देशकालके अनुसार न अति तिक्क न अति कटु न अति कषाय म अति माम्ल (खाट्टा) न अति मधुर किन्तु उस गर्भके हितकारक, परिमित, तथा पथ्य आहार खाती थी और अति चिन्ता, अति शोक, अति दीनता, अति मोह अति भय तथा अति परित्रास नहीं करती थी। चिन्ता, शोक, मोह, भय और परित्रास से रहित हो कर भोजन, आच्छादान, गन्धमाल्य और अलङ्कारों से युक्त होकर सुखपूर्वक उस गर्नको पहन करती थी। यह ज्ञाता सूत्रके उक्तपाठका अर्थ है। इसी पाठका नाम लेकर जीतमल भी कहते हैं कि धारिणीने गर्भ पर अनुकम्पा करके मनवान्छित आहार खाया था परन्तु इस पाठमें मनवांछित आहार खाना नहीं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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