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________________ २७२ सद्धर्ममण्डनम् । अर्थ : __ मैं श्रमण हूं और संयत यानी सर्व सावद्य योगोंसे हटा हुआ हूं। मैं ब्रह्मचारी और धन, पचन, पाचन, तथा परिग्रहसे रहित हूं, आपके यहां भिक्षाथ भिक्षाके समयमें आया हूं गृहस्थ अपने भोजनार्थ जो अन्न बनाते हैं उसी अन्नको भिक्षाके लिए मैं आया हूं आपके इस यज्ञ स्थान में प्रचुर अन्न दीन अनाथ और दरिद्रोंको दिया जाता है और खाया जाता है तथा खिलाया जाता है यह सब अन्न आप लोगोंका ही है। मैं भिक्षाजीवी तपस्वी हूं इसलिए आपके यहां जो वंचासे भी बंचा हुआ अन्न हो वह मुझे मिलना चाहिए। यहां यक्षने मुनिपर अनुकम्पा करके ब्राह्मणोंसे नम्रतापूर्वक मुनिको भिक्षा देनेका उपदेश दिया है यह उपदेश देना बुरा नहीं किन्तु धर्म है। जैसे कोई पुरुष क्षुधातुर साधुको भिक्षा देनेके लिए लोगोंको उपदेश देवे तो वह बुरा नहीं कहा जा सकता। उसी तरह मुनिको भिक्षा देनेके लिए यक्षका ब्राह्मणोंको उपदेश देना बुरा नहीं है । जब यक्षके उपदेशसे ब्राह्मण लोग न समझे बल्कि और अधिक उत्तेजित होकर मुनिको मारने दौड़े तब यक्षने भी क्रोध करके ब्राह्मणोंको मारा था। यह मारना रूप कायं ब्राह्मणोंपर क्रोध करके यक्षने किया था मुनिपर अनुकम्पा करके नहीं क्योंकि जहां मारने पीटनेकी बात आई है वहां मूल पाठमें यह नहीं कहा है कि यक्षने मुनिपर अनुकम्पा करके ब्राह्मणोंको मारा था अतः यक्षका यह कार्य क्रोधके कारण हुआ था अनुकम्पाके कारण नहीं अनुकम्पा करके उसने ब्राह्मणोंको उपदेश दिया था मारा नहीं था। इसलिए इस मारने रूप कार्यो के सावध होनेपर भी इसके पहले जो यक्षने ब्राह्मणोंको उपदेश दिया था वह सावद्य नहीं हो सकता। जैसे कोई साधु भक्त श्रावक, साधुपर अनुकम्पा करके लोगोंको भिक्षा देनेका उपदेश देवे परन्तु उसके उपदेशसे लोग भिक्षा तो न दें उलटे उत्तेजित होकर मुनिको मारने दोड़ें, यह देखकर साधु भक्त वह श्रावक भी यदि लोगोंको मारे पीटे तो उसके इस कार्यसे उसका पहला कार्य यानी साधुको भिक्षा देने के लिए उपदेश देना बुरा नहीं हो सकता उसी तरह यक्षने जो ब्राह्मणोंको मारा था इससे उसका पहला कार्य यानी मुनि पर अनुकम्पा करके भिक्षा देनेके लिए उपदेश देना बुरा नहीं हो सकता। अत: उत्तराध्ययन सूत्रकी गाथाका नाम लेकर हरिकेशी मुनिपर यक्षकी अनुकम्पा को सावध कहना एकान्त मिथ्या है। (बोल ३१ वां समाप्त) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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