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________________ २६६ सधर्ममण्डनम् । ये लोग गृहस्थकी नौकरी करते हैं । इस प्रकार प्रवचनकी निन्दा होती है। उस साधु पर श्रेष्ठजन और साधारणजन दोनोंही दोष लगाते हैं श्रेष्ठ पुरुष कहते हैं कि ये साधु मेरे घरके कामकाज करते हैं और साधारण पुरुष कहते हैं ये साधु गृहस्थोंकी खुशामद करते हैं। इनका धर्म अच्छा नहीं है ये मेरे वछड़ोंको बांधते हैं और छोड़ते हैं । इन निन्दा आदि कारणोंसे माधुको गाय आदि प्राणियोंका बंधन और मोचन न करना चाहिये। यह ऊपर लिखे हुए भाष्यकी चूर्णीके पाठका अर्थ है। उक्त भाष्य और चूर्णीमें गाय आदि पशुओंके बांधनेसे अनर्थ होना बतलाकर प्रायश्चित्त कहा है परन्तु गाय पर अनुकम्पा करनेसे प्रायश्चित्त होना नहीं कहा है इसलिए निशीथ सूत्रके इस पाठका नाम लेकर गाय आदि प्राणियोंपर अनुकम्पा करनेसे प्रायश्चित्त बताना अज्ञानियोंका कार्य समझना चाहिए । अव प्रश्न यह होता है कि त्रस प्राणीको बांधनेसे तो अनर्थ होनेको संभावना है इसलिए निशीथके उक्त पाठमें उन्हें बांधनेसे साधुको प्रायश्चित्त होना कहा है परन्तु बंधे हुए पशुको बंधनसे मुक्त करनेमें कौनसा अनर्थ होता है जिससे बंधे हुए पशुको छोड़नेसे भी प्रायश्चित्त कहा है" तो इसका उत्तर भी इसी भाष्य और चूर्णीमें दिया है, वह निम्नलिखित भाष्य और चूर्णीका पाठ है ___"छः काय अगड विसमे हिय गट्ठ पलाय खयइ पीएवा। जोग क्खेम वहन्ती गेवं दोसाय जे बुत्ता" (भाष्य) तन्न गाय मुक्क मडंतं छ: काय विराहणं करेज्ज । अगडे विसमेवा पडिज्ज, तेणेंहिंवा हीरेज्जा नट्ठ अटवीए रुलतं अत्थेज्ज मुक्कवा पलाइयं पुणो वंधितुन सकइ । दुगादि सडफ्फडहिंवा खज्जइ। मुक्कवा माऊए थणात खीरं पीएज्ज । जइवि एवमादि दोषा न होज तहवि गिहिणो विसत्था अत्थेज्ज अम्हं घरे साहवो सुतत्थ जोय खेम वावारं वहंति मणंति एवं मणेणं चिन्तित्ता अणुत्त सत्ता अप्पणो कम्म करेंति । अहतदोषभया मुक्क पुणो वंधति तत्थणं वन्धने जे दोसा वुत्ता ते भवंति । जम्हा एए दोसा तम्हाण वंधति णमुयंति" (चूर्णी ) (अर्थ) बन्धनसे छुटे हुए बछड़े दौड़कर छः कायके जीवोंकी विराधना करते हैं तथा खाई या गड्ढ़े आदिमें गिर जाते भी हैं उन्हें चोर चुरा सकता है या जंगलमें भूलकर इधर उधर भटकते फिरते हैं । भागते फिरते हुए बछड़ोंको फिर बांधनेमें कठिनाई भी होती है। तथा नाहर आदि जीवोंसे यदि वे मार दिए जायें अथवा वे अपनी माता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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