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________________ २५० सद्धमण्डनम् । जिसने व्यभिचार करके द्रव्य संग्रह किया है उसने अपने मोह ममताको बढाया है तथा अपने चारित्र को नष्ट किया है इसलिये वह विषयानुरागिणी है धर्मानुरागिणी नहीं है । यह सुन कर उक्त श्रावकने कहा कि "जिस प्रकार आपके दर्शनार्थ आई हुई इन दोनों स्त्रियोंमेंसे गहना बेंच कर साधु दर्शनका लाभ उठाने वालीको धार्मिक और व्यभिचार करा कर दर्शनका लाभ करने वालीको आप पापिनी कहते हैं उसी तरह अपना जेवर देकर जीवरक्षा करने वाली स्त्रीको धार्मिक और व्यभिचार करा कर जीवरक्षा करने वालीको आप पापिनी क्यों नहीं कहते ? जिसने अपना जेवर देकर जीवरक्षा की है उसने अपने जेवरसे प्रेम उतार कर किसी सन्त महात्मा के सत्सङ्गसे दयामें चित्त लगाया है और बुरे कार्य से निवृत्त हो कर जीवरक्षा जैसे उत्तम काय्र्य का सेवन किया है अतः वह धार्मिक स्त्री है । और जिसने जीवरक्षाके बहाने से व्यभिचारका सेवन किया है वह साधु दर्शनार्थ व्यभिचार सेवन करने वाली स्त्री के समान ही दुरात्मा है । परन्तु आप लोग साधु दर्शनार्थ आई हुई उक्त दोनों स्त्रियोंमें तो झट भेद बतला देते हैं और जीव रक्षा के विषय में उक्त दोनों स्त्रियों को एक समान ही पापिनो बतलाते हैं इसका कारण क्या है ? यह तो आपका एक दुराग्रह है । जब कि साधु दर्शनार्थ अपने जेवरसे प्रेम हटाने वाली स्त्री धार्मिक हो सकती है तो जीवरक्षार्थ अपने जेवरका प्रेम हटाने वालो स्त्री धार्मिक क्यों नहीं हो सकती ? अतः द्रव्य दान देकर जीव रक्षा करने वालो स्त्रोको पापिनो कहना पापियोंका काय्यै समझना चाहिये । ( बोल २१ वां समाप्त ) ( प्रेरक ) भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ १४९ पर निशीथ सूत्र उद्देशा १३ बोल २७ का नाम लेकर लिखते हैं: “अथ अठे गृहस्थ तथा अन्य तीर्थीने मार्ग भुलाने दुःखी अत्यन्त देखि मार्ग वतायां चौमासी प्रायश्चित्त कह्यो ते मांटे असंयतिरी सुख साता वान्छया धर्म नहीं" ( ० पृ० १४९ ) इसका क्या उत्तर ? ( प्ररूपक ) निशीथ सूत्रका वह पाठ लिख कर इसका समाधान दिया जाता है वह पाठ यह है : Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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