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बोल तीसरा पृष्ठः९७ से १०० तक आनन्द श्रावकके समान ही अभिप्रह धारी बारह व्रतधारी श्रावक राजा प्रदेशीने दानशाला खोल कर हीन दीन दुःखी जीवको अनुकम्पा दान दिया था। ..
बोल चौथा १०० से १०१ तक रान प्रश्नीय सूत्रमें राजा प्रदेशी को दान देता हुआ विचरना लिखा है. कान देने से न्यारा होकर नहीं।
बोल पांचवां १०१ से १६० तक भगवती शतक ८ उद्देशा ६ के मूलपाठमें मिथ्या धर्मका समर्थन करने वाले तथा मिथ्यादर्शनानुसारी वेश धारण करने वाले असंयतिको गुरु बुद्धिसे दान देनेसे एकान्त पाप कहा है अनुकम्पा दान देनेसे नहीं।
बोल छट्ठा पृष्ठ १०६ से २०९ तक आर्द्र कुमार मुनिने दया धर्मके निंदक और हिंसा धर्मके समर्थक वैडाल. व्रतिक नीच वृत्ति वाले ब्राह्मणको गुरु बुद्धिसे भोजन देनेसे नरक जाना कहा है और मनुस्मृति में भी यही बात कही है, अनुकम्पा दानका खण्डन नहीं किया है।
___ बोल सातवां पृष्ठ १०९ से ११० तक . भृगु पुगेहितके पुत्रोंने अनुकम्पा दानमें एकान्त पाप नहीं कहा है किन्तु जो लोग यज्ञयागादि करने और पुत्रोत्पादन करनेसे ही दुर्गतिका रुकना बतला कर प्रव्रज्या प्रहण करनेको व्यर्थ कहते हैं उनके मन्तव्यको मिथ्या कहा है।
बोल ८ वां पृष्ठ. ११० से ११२ तक . सुयगडांग सूत्र श्रुतस्कन्ध २ अ० ५ गाथा ३३ में भाषा सुमतिका उपदेश किया. है अनुकम्पा दानका खण्डन नहीं किया है। उस गाथामें वर्तमान कालका नाम भी. नहीं है।
बोल ९ वां पृष्ठ ११२ से ११३ तक नन्दन मनिहार अनुकम्पा दान देनेसे मेढक नहीं हुआ किन्तु नन्दा नामक पुकरिणीमें आसक्त होनेसे हुआ । ज्ञाता सूत्र अध्ययन १३ ।
बोल १० पृ० ११४ से ११९ तक धर्मदानको छोड़ कर बाकीके नौ दान एकान्त अधर्मदान नहीं हैं। इनके गुणानुसार नाम रक्खे गये हैं, यह भीषणजोने भी लिखा है।
बोल १२ पृ०.१५९ से ११९ तक . विश्रामस्थानसे बाहर की सभी क्रियाएं एकान्त पापमें नहीं है। ..
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