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बोल ३४ वां पृष्ठ ७१ से ७२ तक गोतम स्वामीने स्कन्धकजीको भक्तिभावके साथ भावरूप वंदन नमस्कार करने को आज्ञा दी थी मिथ्यात्वके साथ द्रव्य वंदन कानेकी नहीं।
बोल ३५ वां पृष्ठ ७२ से ७५ सक तामली वाल तपस्वी और सोमिल ऋषिकी अनित्य जागरणा उनकी प्रत्रज्याके समान वीतराग मत प्रसिद्ध अनित्य जागरणसे भिन्न थी।
वोल ३६ वां पृष्ठ ७५ से ७७ तक बाल तपस्या और अकाम निजरा जिन आज्ञामें नहीं है तथापि इनसे स्वर्गप्राप्ति होती है। अकाम निर्जरा और बाल तप करने वाले को साक्षात् उववाई सूत्रमें परलोक का अनाराधक कहा है।
बोल ३६ वां पृष्ठ ७७ से ७९ तक गोशालकमतोक्त जिव्हेन्द्रियप्रतिसलीनता वीतराग मतझी जिव्हेन्द्रिय प्रतिसंलीनतासे भिन्न है।
. बोल ३८ वा ७९ से ८१ तक प्रश्नव्याकरण सूत्रके दूसरे सम्वर द्वारमें व्रतधारियोंसे सत्यका ग्रहण करना कहा है दाम्भिकोंसे नहीं।
बोल ३९ वां पृष्ठ ८१ से ८३ तक व्यन्तर संज्ञक देवताओंके पूर्वभव के कार्य को आशामें नहीं कहा है किन्तु उनसे भोगे जाते हुए सुख विशेष की तरह उसे भी शुभ कह कर वस्तु स्थिति वताई है।
बोल ४० वां पृष्ठ ८३ से ८६ तक माता पिताकी सेवा शुश्रूषा करने वाले पुत्रको उवाई सुत्रमें स्वर्गमामो कहा है।
अथ दानाधिकारः।
बोल पहला ८७ से ९४ तक हीन दीन जीवोंको अनुकम्पा दान देना एकान्त पाप नहीं है। जो अनुकम्पा दानको एकान्त पाप बता कर श्रावकोंसे उसका त्याग कराता है वह ठाणांग सूत्रके मूल पाठानुसार “पिहिता गामि पथ" नामक अन्तराय कर्म बांधता है।
बोल दूसरा पृष्ठ ९४ से ९७ तक आनन्द श्रावकने हीन दीन दुःखी जीवोंको अनुकम्पा दान देनेका अभिग्रह नहीं धारण किया था । किन्तु अन्य तीर्थीको गुरु बुद्धिसे दान न देने का अभिग्रह धारण किया था।
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