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________________ २०८ सद्धममण्डनम् । धम्म माइक्लोजा वह गुणतर फलं होजा तेसिंच वह्वणं समण माहन भिक्खुयाणं । तंजइणं देवाणुप्पिया ! पएसिस्स बहुगुणतरं होज्जा सव्वस्सवि जणवयस्स" (राजप्रश्नीय सूत्र ) अर्थ: हे देवानुप्रिय ! आप यदि प्रदेशी राजाको धर्म सुनावें तो बहुत गुण युक्त फल हो । वह किसे हो ?खुद राजा प्रदेशीको गुण हो और उनके हाथसे मारे जाने वाले बहुतसे द्विपद, चतुष्पद, मृग, पशु, पक्षी और सरी सृपोंको हो। हे देवानुप्रिय ! आप यदि राजा प्रदेशीको धर्म सुनावें तो बहुतसे श्रमग, माहन, और भिक्षुकोंको, तथा राजा प्रदेशी और उनके सम्पूर्ण राष्ट्रको बहुत गुणयुक्त फल हो। इस पाठमें राजा प्रदेशीको धर्म सुनानेसे राजा प्रदेशी और उसके हाथसे मारे जाने वाले द्विपद, चतुष्पद, मृग, पशु, पक्षी और सरी सृप, दोनों ही को गुण होना कहा है। इसका भाव यह है कि राजा प्रदेशीको धर्म सुनानेसे वह हिंसा करना छोड़ कर हिंसाके पापसे बच सकता है और उसके हाथसे मारे जाने वाले द्विपद, चतुष्पद आदि प्राणियोंकी प्राणरक्षा हो सकती है इसलिये राजा प्रदेशीको हिंसाके पापसे बचनेका गुण है और उसके हाथसे मारे जाने वाले प्राणियों को प्रागरक्षा रूप गुण है। इन दोनों ही लाभके लिए चित्त प्रधानने केशी स्वामीसे राजा प्रदेशीको धर्मोपदेश देनेकी प्रार्थना की है केवल प्रदेशीको हिंसाके पापसे बचाने के लिए ही नहीं अत: हिंसकके हाथसे मारे जाने वाले प्राणियोंकी प्राणरक्षाके लिए भी साधु उपदेश देते हैं सिर्फ हिंसकको हिंसाके पापसे बचानेके लिए ही नहीं यह इस पाठसे स्पष्ट सिद्ध होता है। यदि कोई कहे कि “यह पाठ, चित प्रधान की प्रार्थनाको बतलानेके लिए आया है इसलिए यद्यपि इस पाठमें चित्त प्रधानने द्विपद, चतुष्पद, मृग, पशु, पक्षी और सरीसृपोंकी प्राणरक्षाके लिए केशी स्वामीसे धर्मोपदेश देने की प्रार्थना की है तथापि इससे साधुओंका मरते प्राणीकी प्राण रक्षा करनेके लिये धमो पदेश देना नहीं सिद्ध हो सकता क्योंकि चित्त प्रधान, अज्ञानवश भी मरते जीवकी रक्षा करनेके लिये मुनिसे धो पदेश देने की प्रार्थना कर सकता है" तो इसका उत्तर यह है कि चित्त प्रधान, कोई मामूली मनुष्य नहीं किन्तु बारह व्रतधारी श्रावक था वह जीवरक्षामें धर्म या अधर्म होना जानता था। दूसरी बात यह कि चित्त प्रधानने केशी स्वामीसे जीव रक्षाके लिए धर्मापदेश करने की प्रार्थना की थी, यदि यह कार्य एकान्तपापका था तो केशी स्वामीने चित्त प्रधानको क्यों नहीं समझा दिया कि "हे देवानुप्रिय ! राजा प्रदेशीको तारनेके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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