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अनुकम्पाधिकारः।
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चोरीके पापसे मुक्त करनेके लिये ही धर्मापदेश देते हैं धनीके धनकी रक्षाके लिये नहीं। प्रश्न व्याकरण सूत्र का वह पाठ यह है "पर दव्व हरण वेरमण दयट्ठाए पावयणं भगवया सुकहियं” अर्थात् “पराये द्रव्यके हरण रूप पापसे निवृत्ति रूप धर्मकी रक्षाके लिये भगवान्ने प्रवचन कहा है।"
इस पाठमें पराये द्रव्यके हरण रूप पापसे निबृत्तिके लिये प्रवचनका कथन होना कहा है धनीके धन की रक्षा के लिये नहीं इसलिये साधु चोरको चोरी के पाप से बचानेके लिये ही धर्मोपदेश देता है धनीके धनकी रक्षाके लिये नहीं परन्तु जीवरक्षाके विषयमें यह नहीं कहा है कि “हिंसाकी निवृत्तिके लिये जैनागमका कथन हुआ है जीवरक्षाके लिये नहीं बल्कि वहां तो यह साफ लिखा है कि "सम्व जगजीव रक्षण दयठ्याए पावयर्ण भगवया सुकहियं” अर्थात् “संसारके सभी प्राणियोंकी रक्षा रूप दया के लिये भगवानसे जैनागम कहा गया है।" इसलिये हिंसकके हाथसे मारे जाने वाले जीवकी रक्षा करनेके लिये धर्मोपदेश देना शास्त्रानुमोदित और बहुत ही प्रशस्त कार्य है इसे पाप कहने वाले एकान्त मिथ्यावादी और मिथ्यादृष्टि हैं । धनरक्षाके साथ जीवरक्षा की तुल्यता बताना भी अज्ञान मूलक है। धन अचित्त पदार्थ है उसकी अनुकम्पा नहीं होती परन्तु जीव चेतन है उसकी रक्षा करना धर्म है अतएव शास्त्रमें जगह जगह "प्राणानु कम्पयाए भूयानुकम्पयाए" इत्यादि पाठ आया है “धनानुकम्पयाए वित्तानु कम्पयाए” इत्यादि पाठ नहीं आया है । इसलिये धनरक्षाका दृष्टान्त देकर जीवरक्षाके लिए धर्मोपदेश देनेमें एकान्त पाप कहना अज्ञानियोंका कार्य है।
(बोल १ समाप्त) (प्रेरक)
हिंसकके हाथसे मारे जाने वाले प्राणियोंकी प्राणरक्षाके लिये किसी साधु महात्मा ने धर्मोपदेश दिया हो ऐसा उदाहरण मूल सूत्र के साथ बतलाइए ? (प्ररूपक)
राज प्रश्नीय सूत्रका मूल पाठ लिख कर इसका समाधान किया जाता है। वह पाठ यह है:___"जइणं देवाणुप्पिया ! पएसिस्स रण्णो धम्ममाईक्खेजा बहु गुणतरं खलु होजा, पएसिस्स रण्णो तेसिं च वहुणं दुप्पयचउप्पय मियपसुपक्खीसरीसवाणं । तंजइ देवाणु प्पिया ! पएसिस्स रण्णो
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