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________________ दानाधिकारः। "इहाहारकशरीरं संयमवतामेव भवति तत्र चाविरतेरभावेऽपि प्रमादादधिकरणत्व मवसेयम्" अर्थात् आहारक शरीर संयमधारीका ही होता है उस संयमधारीमें यद्यपि अविरति नहीं है तथापि प्रमादके कारण उसे अधिकरण समझना चाहिये । तथा ठाणाङ्ग सूत्रके दसवें ठाणेमें अकुशल मन वचन और कायको भाव शस्त्र कहा है और प्रमादकी हालतमें प्रमादी साधुके भी मन वचन और काय अकुशल होते हैं । तथा भगवती शतक १ उद्देशा १ में प्रमादी साधुको आत्मारम्भी परारम्भी और तदुभयारम्भी कहा है वह पाठ यह है:___ "तत्थर्ण जेते पमत्त संजया ते सुहंजोगं पडुच्च णो आयारंभा णो परारंभा णो तदुभयारंभा अणारंभा चे व असुभजोगं पडुच्च आयारंभावि परारंभावि तदुभयारंभाषि णो अणारंभा" (भगवती शतक १ उद्देशा १) अर्थः प्रमादी साधु, शुभयोगको अपेक्षासे आत्मारंभी परारंभो और तदुभयारंभी नहीं है किन्तु अनारम्भी है परन्तु अशुभ योगको अपेक्षासे आत्मारंभी परारंभी और तदुभयारंभी है अनारंभी नहीं है। ___ इस पाठमें प्रमादी साधुको अशुभ योगकी अपेक्षासे आत्मारंभी परारंभी और तदुभयारंभी कहा है और पूर्वलिखित भगवतीके पाठमें प्रमादी साधुकी आत्माको अधिकरण कहा है एवं ठाणाङ्ग सूत्रके दशम ठाणेमें दुष्प्रयुक्त मन वचन और कायको भाव शस्त्र कहा है अत: प्रमादी साधुको अन्नादि दान देना भी भ्रमविध्वंसनकारके हिसाबसे शस्त्रको ही तीखा करना कहना चाहिये धर्म या पुण्य नहीं। यदि कहो कि "प्रमादी साधुको उसके प्रमादकी बृद्धिके लिये दान नहीं दिया जाता किन्तु उसके ज्ञान दर्शन और चारित्रकी उन्नतिके लिये दिया जाता है इसलिये प्रमादी साधुको दान देना शस्त्र को तीखा करना नहीं है" तो उसी तरह यह भी समझो कि श्रावकको उसके दोषोंकी वृद्धिके लिये आहारादि नहीं दिया जाता उसके व्रतकी पुष्टि के लिये दिया जाता है अतः श्रावकको व्रत पुण्यार्थ दान देना भी एकान्त पाप या शस्त्रको तीखा करना नहीं है। इसे एकान्त पाप या शस्त्रको तोखा करना बतलाने वाले मिथ्यावादी हैं। ___सामायक और पोषाके समय श्रावक, अपने धर्मका पालन करनेके लिये पूजनी आदि धर्मोपकरण रखते हैं उन उपकरणोंको एकान्त पापमें बताना पापियोंका कार्य है। विना पंजे पौषधोपवास करनेसे श्रावकको अतिचार होना उपासक दशांग सूत्रके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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