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________________ सद्धममण्डनम् । "जेभिक्खू अन्नउत्थियंवा गारत्थियंवा पज्जोसवेइ पजोसवं तंवा साइजई" अर्थात् जो साधु अन्य यूथिकको या, गृहस्थको पर्युषण कराता है या कराते हुए को अच्छा समझता है उसको प्रायश्चित्त आता है । यह इस पाठका अर्थ है। इसमें कहा है कि "गृहस्थ और अन्य तीर्थीको पर्युपग कराने वालेकी अनुमोदना करनेसे साधुको प्रायश्चित्त आता है" इसका आशय यही है कि साधु किसी गृहस्थको या अन्य तीर्थीको पर्युषण करावे तो उसकी अनुमोदना करने वाले साधुको प्रायश्चित्त होता है परन्तु यदि गृहस्थ किसी गृहस्थको पयुषग करावे तो उसका अनुमोदन करने वाले साधुको प्रायश्चित बतलानेका आशय नहीं है उसी तरह बोल ७८ और ७९ के पाठ का भी यही अभिप्राय है कि गृहस्थको उत्सर्ग मार्गमें दान देने वाले साधुको अनुमोदन करनेसे साधुको प्रायश्चित्त होता है परन्तु गृहस्थको दान देने वाले गृहस्थकी अनुमोदना करनेसे नहीं। यदि कोई यह बात न मान कर गृहस्थको अनुकम्पा दान देने वाले गृहस्थके अनुमोदन करनेसे भी साधुको प्रायश्चित्त बतावे तो फिर उसके हिसाबसे गृहस्थको या अन्य यूथिकको प्रतिक्रमण ( पय्युषग) कराने वाले गृहस्थके अनुमोदन करनेसे भी साधुको प्रायश्चित्त होना चाहिये तथा जिस कारयका साधु अनुमोदन नहीं करते ऐसे पय्युषण रूप कार्य करने और कराने वाले गृहस्थको एकान्त पाप होना चाहिये परन्तु यह बात शास्त्र सम्मत नहीं है पय्युषण करने वाले या कराने वाले गृहस्थ को तथा उसका अनुमोदन करने वाले साधुको एकान्त पाप नहीं होता उसी तरह गृहस्थ को अनुकम्पादान देने वाले गृहस्थको और उसका अनुमोदन करने वाले साधुको प्रायश्चित नहीं होता। अत: गृहस्थको अनुकम्पा दान देने वाले गृहस्थके अनुमोदन करनेसे साधुको पाप बताना मिथ्या है । भूमविध्वंसनकारने निशीथ सूत्र उद्देशा १५ बोल ७८ ओर ७९ के मूल पाठ का अर्थ पूर्वा पर सोचे बिना ही गृहस्थ को दान देने वाले गृहस्थके अनुमोदन करनेसे साधुको प्रायश्चित्त होना बताया है अत: उनके अविवेक पूर्ण और प्रकरण विरुद्ध अथके फंदेमें पड़कर अनुकम्पा दानको एकान्त पाप नहीं समझना चाहिये । निशीथ सूत्र में इस प्रकार के अनेकों पाठ मिलते हैं जिनका भूमविध्वंसनकारकी रीतिते अर्थ कान महान आयका कारण हो सकता है। जो कि निशीथ सूत्रमें यह भी पाठ आया है : ___ "जेभिक्खू वासावासं पजोसवो सि गामाणु गामं दुइज्जइ दुइज्जंतं वा साइज्जई" ( निशीथ सूत्र ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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