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________________ सद्धर्ममण्डनम् । इसी तरह सूयगडांग श्रुत स्कन्ध २ उद्देशा ५ गाथा ३२ को लिख कर भ्रमविध्वंसनकारने जो गृहस्थको दान देने अर्थ में "पडिलभमाणे" इस पदका व्यवहार बतलाया है वह भी मिथ्या है। उस गाथामें स्वतीर्थी या परतीर्थी साधुको ही देने अर्थमें “ पडिलभमाणे" इस पदका व्यवहार हुआ है गृहस्थको दान देने अर्थ में नहीं यह बात आगे चलकर बतायी जायगी अतः सू० की गाथाका नाम लेकर गृहस्थको दान देने अर्थ में "पडिलभमाणे" पदका व्यवहार बताना भी अयुक्त है । भगवती शतक ८ उद्देशा ६ के मूल पाटमें "पडिलभमाणे" यह पद आया है इसलिए यह पाठ परतीर्थी साधु यानी अन्य यूथिकोंके गुरुको गुरुबुद्धिसे दान देने में हो एकान्त पाप बतलाता है अनुकम्पा दान देनेमें नहीं । अतः भगवतीके उक्त मूल पाठका नाम लेकर अनुकम्पा दानका निषेध करना मूर्खोका का है । [ बोल ५ वां समाप्त ] १०६ ( प्रेरक ) भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ ६६ पर सुय० श्रुत० २ अ० ६ गाथा ४३४४ और ४५ वीं को लिख कर उनकी समालोचना करते हुए लिखते हैं 66 अथ अठे आर्द्र मुनिने ब्राह्मणां कह्यो - जे पुरुष बे हजार ब्राह्मण नित्य जीमा ते महा पुण्यस्कन्ध उपार्जी देवता हुई एहवो हमारे वेदनो वचन छै तिवारे आर्द्र मुनि बोल्या महो ब्राह्मगो ! जे मांसना गृद्वी घर घरने विषै मर्जारनी परे भ्रमण करनहार एहवा बेहजार कुपात्र वाह्मणाने नित्य जीमाडे ते जीमाडनहार पुरुष ते ब्राह्मणां सहित बहु वेदना छै जेहने एहवी महाअसह्य वेदना युक्त नरकने विषे जाई" (भ्र० प्र० ६६ ) इसका क्या समाधान ( प्ररूपक ) आर्द्र कुमार मुनिने हिंसक, मांसाहारी, वैडालब्रतिक ब्राह्मणों को पूज्य बुद्धिसे भोजन करानेसे नरक जाना कहा था, हीन दीन प्राणियोंपर दया लाकर उनको दान देनेसे एकान्त पाप या नरक जाना नहीं कहा इसलिए आर्द्र कुमार मुनिका नाम लेकर अनुकम्पा दानका खण्डन करना मूर्खो का कार्य है। अब वे गाथा ये लिख कर उन का अर्थ बताया जाता है जिससे पाठकोंको आर्द्र कुमार मुनिके कथनका भाव ज्ञात जाय । वे गाथाएं ये हैं "सिणायगाणंतु दुवे सहस्से जे भोगए यिए माहणाणं । ते पुण्ण खन्धे सुमहज्जणित्ता भवन्ति देवा इति वेयवाओ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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