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________________ दानाधिकारः। ऐसे सरल अर्थको जो अशुद्ध टव्वा अर्थका आश्रय लेग विपरीत बदलाता है उससे शास्त्रके यथार्थ अभिप्रायको समझने और प्रकट करने की आशा रखना दुराशामात्र समझनी चाहिये। (बोल २) (प्रेरक) अन्य तीर्थीको गुरु बुद्धिसे दान देनेका निषेध, शास्त्र करता है अनुकम्पाराकर दान देनेका नहीं इसलिये हीन दीन दुःखीको अनुकम्पादान देना एकान्त पाप नहीं है यह ज्ञात हुआ। अब शास्त्रके मूलपाठसे यह बतलाइये कि किस अभिग्रहधारी वारह व्रतधारी श्रावकने वारह ब्रत धारण करनेके पश्चात् हीन दीन दुःखी जीवोंको अनुकम्पा दान दिया है ? (प्ररूपक) गजप्रश्नीय सत्र में आनन्द श्रावकी तरह अभिग्रहधारी समकित सहित वारह ब्रतधारी राजा प्रदेशीका वारह व्रत धारण करनेके पश्चात् हीन दीन दुःखी जीवोंको दानशाला खोल कर अनुकम्पादान देना लिखा है यह अभिग्रहधारी वारह व्रतधारी श्रावक के अनुकम्पा दान देनेका पूर्ण उदाहरण है। राजाप्रदेशी आनन्द श्रावकके समान ही वारह व्रतधारी श्रावक होनेके कारण अन्य तीर्थी को दान सम्मान पूजा प्रतिष्ठा आदि न करनेका अभिग्रह धारण किया हुआ था तो भी उसने दीन हीन जीवों को अनुकम्पा दान दिया, इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि अन्यतीर्थीको अनुकम्पा लाकर दान न देने का श्रावकों को अभिग्रह नहीं होता पूज्य बुद्धिसे देनेका होता है अतः अन्य तीर्थी पर अनुकम्पा लाकर दान देने में एकान्त पाप कहने वाले मिथ्यावादी हैं। .. __यदि कोई यह पूछे कि राजा प्रदेशी आनन्द श्रावककी तरह अभिग्रह धारी था इसमें क्या प्रमाण है ? तो उसके लिए आवश्यक सूत्रका मूल पाठ प्रमाण दिया जाता है। वह पाठ यह है 'तत्थ समणोवासओ पुव्यामेव मिच्छत्ताओ पडिक्कमइ सम्मत्त उपसंपज्जइ । नो से कप्पह अज्जप्पभिई अन्नथिएवा" इत्यादि। (आवश्यक सूत्र) यह पाठ हर एक समकितधारीके लिए कहा है इस लिए सभी समकितधारी श्रावक अन्य तीर्थीको दान सम्मान पूजा प्रतिष्ठा न करनेका अभिप्रह धारण करते हैं । . १३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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