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सद्धममण्डनम् ।
जो श्रावक विशिष्ट निर्जराके निमित्त वैराग्यभावसे स्वयं उपवास करता है और उपदेश देकर अपने परिवारको भी उपवास कराता है वह उस रोज घरमें रसोई न होनेसे साधुको आहार पानी नहीं देता, तो भी उसको साधुदानका अन्तराय नहीं होता किंतु विशिष्ट निर्जराका लाभ होता है क्योंकि उसने साधुदानमें अन्तराय देनेके लिये उपवास नहीं किया है उसी तरह जो श्रावक सामायक और पोषा करते हैं उनको अनुकम्पादान का अन्तराय नहीं होता किन्तु विशिष्ट गुणकी प्राप्ति होती है क्योंकि अनुकम्पादानको त्यागनेके उद्देश्यसे श्रावक सामायक और पोषा नहीं करते । अत: अनुकम्पादानको एकान्त पाप जान कर सामायक और पोषामें उसका त्याग बतलाना अज्ञानियों का कार्य है।
भूत भविष्यत् और वर्तमान तीनों ही कालमें अनुकम्पादानका निषेध करना शास्त्र में वर्जित है । जैसे कि सुयगडांग सूत्रमें लिखा है
"जेयणं पडिसेहति वित्तिछे यं करंतिते" अर्थात् जो अनुकम्पादानका निषेध करते हैं वे हीन दीन जीवोंकी जीविका का उच्छेद
__ यहां वर्तमान कालका नाम न लेकर सभी कालमें अनुकम्पादानका निषेध करना मना किया है इसलिये जो किसी भी कालमें अनुकम्पादानका निषेध करते हैं वे हीन दीनजीवोंकी जीविकाका छेदन करनेवाले पापी हैं । भ्रमविध्वंसनकारने इस गाथाको लिख कर इसके नीचे टव्वा अर्थ लिखा है वह टव्वा अर्थ यह है “जे गीतार्थ दाननेनिषेधे ते वृत्तिच्छेद वर्तमान काले पामवानो उपाय तेहनो विन्न करे" तथा इस पाठकी समालोचना करते हुए भ्र० कारने लिखा है “दान लेवे ते देवे छै ते वेलां निषेध्यां बृत्तिछेद हुवे अने जेलेवे ते देवे न थी वो बृत्तिच्छेद किम हुवे । ते मांटे बृत्तिच्छेद वर्तमान काले इज छै । वली सुयगडांगनीवृत्ति शीलांकचार्य की धी ते टीकामें विण वर्तमान कालरो इज अर्थ छै" परन्तु यह बिलकुल मिथ्या है सुयगडांग सूत्रकी उक्त गाथामें वर्तमान कालका नाम तक नहीं है और शीलांकाचार्य्यने जो उक्त गाथाकी टीका लिखी है उसमें भी वर्तमान कालका जिक्र नहीं है किन्तु गाथा और उसकी टीकामें सामान्यरूपसे सब कालके लिए अनुकम्पादानका निषेध करना वर्जित किया है । वह गाथा लिखी जा चुकी है उसकी दीका यह है-"येचकिलसूक्ष्मधियोवयमितिमन्यमानाआगमसद्भावानभिज्ञा प्रतिषेधन्तितेऽप्यगीतार्थाः प्राणिनां बृत्तिच्छेदं वर्तनोपाय विघ्नं कुर्वन्ति” अर्थात् जो अपने को सूक्ष्मदर्शी मानने वाले आगमके तत्त्वको न जाननेके कारण अनुकम्पादानका निषेध करते हैं वे गीतार्थ नहीं हैं क्योंकि वे प्राणियोंकी जीविकामें वाधा देते हैं ।
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