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________________ ५७ सद्धममण्डनम्। कम छै ते सर्व संसारनो कारण छै । अशुद्ध करणीरो कथन इहां कह्यो अने शुद्ध करणीरो कनो इहां चाल्यो न थी" ( भ्र० प० २१ ) इसका क्या समाधान ? ( प्ररूपक) सुगडांग सूत्रकी वह गाथा लिख कर इसका समाधान किया जाता है। वह गाया यह है— " जे याकुद्धा महाभागा वीरा असंमच दंसिणो असुद्ध तेसिं परक्कतं सफल होइ सब्बसो” ( सुयगडांगसूत्र श्रुत० १ अध्ययन ८ गाथा २३ ) इसका अर्थ यह है कि जो पुरुष तत्वअर्थको नहीं जाननेवाले महाभाग ( संसारमें पूजनीय ) धीर और असम्बग्दर्शी ( सम्यग् ज्ञानादि विकल ) हैं उनके किये हुए तप अध्ययन और नियमादिरूप उद्योग सभी अशुद्ध और कर्मबन्धके ही कारण होते हैं। गाथामें मिथ्यादृष्टि अज्ञानी पुरुषोंसे किये हुए तप अध्ययन आदि सभी परलोक-सम्बन्धी काय्ये अशुद्ध और कर्मवन्धके कारण कहे गये हैं। इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि मिथ्यादृष्टि अज्ञानीकी क्रिया मोक्षमार्गमें नहीं है और उन क्रियाओंका अनुष्ठान करनेसे वह मिथ्यादृष्टि पुरुष भी मोक्ष मार्गका आराधक नहीं है। यही बात दूसरे दूसरे दर्शन भी बतलाते हैं वृहदारण्यकोपनिषद् में लिखा है कि “योवा एतदक्षरं गार्ग्यविदित्वाऽस्मिँल्लोके जुहोति यजते तपस्तप्यते वहूनि वर्ष सहस्राण्यन्तवदेवास्यतद्भवति” हे गार्गि ! जो अविनाशी - आत्माको बिना जाने इस लोकमें होम करता है यज्ञ करता है तपस्या करता है वह चाहे हजारों वर्ष तक इन क्रियाओंको करता रहे पर वह संसार के लिए ही हैं (वृहदारण्यक ३ - ९ - ३० ) इसी तरह कठोपनिषद् में लिखा है कि“यस्त्वविज्ञानवान्भवत्यमनस्कः सदाऽशुचिः । नस्तत्पदमाप्नोति संसारं चाधिगच्छति " विज्ञानवान् भवति समनस्कः सदा शुचिः सतुतत्पदमाप्नोति यस्माद् भूयो न जायते । ( कठोपनिषद्) अर्थात् जो ज्ञानी नहीं है वह ठीक-ठीक विचार नहीं कर सकता और वह सदा अपवित्र है वह मोक्ष नहीं पा सकता प्रत्युत संसारमें ही भ्रमण करता रहता है । जो ज्ञानी है वह ठीक-ठीक विचार कर सकता है और वह सदा पवित्र है वह ऐसे पदको पाता है जिससे फिर कभी वापस नह" लौटना पड़ता । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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