________________
( २ )
अर्थात् उस (दन्तिवर्मा) की माने, उसके राज्य के ४,००,००० गांवों में से प्रत्येक गांव में भूमि-दानकर, उसकी मातृ-भक्ति को प्रकट किया ।
बहुत से ऐतिहासिक कन्नौज के गहिड़वाल वंश को राष्ट्रकूट वंश की शाखा मानने में शङ्का करते हैं । परन्तु इस पुस्तक के प्रारम्भ के अध्यायों में दिये इस विषय के प्रमाणों से सिद्ध होता है कि, गाहड़वाल वंश वास्तव में राष्ट्रकूटों की ही एक शाखा था; और इसका यह नाम गाधिपुर (कन्नौज) के शासन सम्बन्ध
15
हुआ था।
;' ';
इन राष्ट्रकूटों का इतिहास पहले पहल हिन्दी में हमारी लिखी (भारत के प्राचीनराजवंश' नामक पुस्तक के तीसरे भाग में कृषा था । इसके बाद इस पुस्तक .के, राष्ट्रकूटों और गहड़वालों से संबन्ध रखने वाले, कुछ अध्याय 'सरस्वती' में निकले थे; और इसके प्रारम्भ के कुछ अध्यायों का संक्षिप्त विवरण, और कन्नौज के गहड़वालों का इतिहास 'रॉयल एशियाटिक सोसाइटी ऑफ ग्रेट ब्रिटेन ऐण्ड आयर्लेण्ड' : के जर्नल में भी प्रकाशित हुआ था । इसी प्रकार इस पुस्तक के “परिशिष्ट" में दिया हुआ विवरग़ा 'सरस्वती' और 'इण्डियन ऐण्टिंकेरी' में छपा था । इसके बाद गत वर्ष यह सारा इतिहास 'The history of the Rāshtrakūtas' के नाम से जोधपुर दरबार के आर्किया लॉजिकल डिपार्टमैन्ट की तरफ़ से प्रकाशित किया गया था । ऐसी हालत में इस पुस्तक में दिये इतिहास को इन्हीं सबका संशोधित और परिवर्धित रूप कहा जासकता है ।
इस पुस्तक के प्रकाशन में जिन-जिन विद्वानों की खोज से सहायता ली गयी है, उनके प्रति हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करना हम अपना कर्तव्य समझते हैं।
A
.
आर्किया लॉजिकल डिपार्टमैंट, "जोधपुर.
( १ ) ई. स. १६२५ में प्रकाशित ।
(२) 'सरस्वती'- जून, जुलाई, और अगस्त १६१७
(३)
(४) मार्च १६२८
(५) जनवरी १६३०
=
ये क्रमश: जनवरी १६३०, और जनवरी १६३२ में प्रकाशित हुए थे ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
विश्वेश्वरनाथ रेउ,
www.umaragyanbhandar.com