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परिशिष्ट के १४ ताम्रपत्र, और २ लेख मिले हैं । इनमें का अन्तिम लेखे वि. सं. १२४५ (ई. स. ११०९) का है। ____ इसके अलावा पृथ्वीराज द्वारा अपने मौसेरे भाई की पुत्री संयोगिता के हरण की कथा मी 'रासो' के रचयिता की कल्पना ही है; क्योंकि इसका उल्लेख न तो पृथ्वीराज के समय बने 'पृथ्वीराजविजय महाकाव्य में ही मिलता है न विक्रम संवत् की चौदहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में बने 'हम्मीर महाकाव्य' में ही। ऐसी हालत में इस कथा पर विश्वास करना अपने तई धोखा देना है । 'रासो' में लिखे इन घटनाओं के समय भी इन घटनाओं के समान ही अशुद्ध हैं। ___ रासो' में मेवाड़ के महाराणा समरसिंह का पृथ्वीराज का बहनोई होना,
और इसीसे उसकी तरफ़ से शहाबुद्दीन से लड़कर माराजाना लिखा है । परन्तु पृथ्वीराज और शहाबुद्दीन का यह युद्ध वि. सं. १२४९ में हुआ था, और महाराणा समरसिंह वि. सं. १३५६ के करीब मरा था । ऐसी हालत में 'पृथ्वीराज रासो' के लिखे पर कैसे विश्वास किया जासकता है । उसी (रासो) में पृथ्वीराज के पुत्र का नाम रैणसी लिखा है । परन्तु वास्तव में पृथ्वीराज के पुत्र का नाम गोविन्दराज था, और उसके बालक होने के कारण ही उसके चाचा हरिराज ने अजमेर का राज्य दबा लिया था । अन्त में कुतुबुद्दीन ने हरिराज को हराकर गोविन्दराज की रक्षा की।
-....-..--.--... .... (१) भारत के प्राचीन राजवंश, भा० ३, पृ. १०८-". (२) ऐन्युअल रिपोर्ट मॉफ दि मार्किया लॉजीकल सर्वे ऑफ इण्डिया, (१९११-२२)
पृ. १२०-१२१ । (३) 'रामो' में संयोगिता को कटक के सोमवंशी राजा मुकुन्ददेव की नवासी लिखा है।
परन्तु इतिहास से इसका भी कुछ पता नहीं चलता। (४) श्रीयुत मोहनलाल विष्णुलाल पण्ड्या ने "विक्रमसाक अनन्द" इस पद के माधार
पर "मनन्द-संवत्" की कल्पना कर रासो' के संवतों को "मनन्द विक्रम संवत्" माना है। इस कल्पना के अनुसार 'रासो' के संवतों में ६१ जोड़ने से विक्रम संवत् बन जाता है । इसलिए यदि 'रासो' में दिये पृथ्वीराज की मृत्यु के सं० १११८ में ६१ जोड़ दिये जाँय तो उसकी मृत्यु का ठीक समय वि. सं. ११४५ माबाता है। परन्तु
इससे नाहहराव आदि के समय की गड़बड़ दूर नहीं होती। (१) भारत के प्राचीन राजवंश, भाग १, पृ. २६३
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