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राष्ट्रकूटों का इतिहास है। नवाँ वि. सं. ११७४ ( वास्तव में ११७५ ) (ई. स. १११६ ) का; दसैवां वि. सं. ११७५ ( ई. स. १११६ ) का; और ग्यारहवां, बारहवां, और तेरहवां वि. सं. ११७६ ( ई. स. १११६ ) का है । ये क्रमशः गङ्गा तट पर के खयरा, ममदलिया, और बनारस से दिये गये थे। ____ ग्यारहवें ताम्रपत्र में इसकी पटरानी का नाम नयनकेलिदेवी लिखा है । चौदहवां, और पंद्रहवां वि. सं. ११७७ (ई. स. ११२० ) का है । सोलहवाँ वि. सं. ११७८ ( ई. स. ११२२ ) का, और सत्रहवाँ वि. सं ११८० ( ई. स. ११२३ ) का है । इसमें इसकी अन्य उपाधियों के साथ ही अश्वपति, गजपति, नरपति, राजत्रयाधिपति, विविधविद्याविचारवाचस्पति आदि विरुद भी लिखे हैं । अठारहवाँ वि. सं. ११८१ (ई. स. ११२४ ) का है । इसमें इसकी माता का नाम रालणदेवी लिखा है । उन्नीसवाँ वि. सं. ११८२ ( ई. स. ११२५ ) का है । यह गङ्गा तट पर के मदप्रतीहार स्थान से दिया गया था । बीसवाँ भी वि. सं. ११८२ (वास्तव में ११८३ ) ( ई.स. ११२७ ) का है । यह गङ्गा तट पर के ईशप्रतिष्ठान से दिया गया था । इक्कीसवां वि. सं. ११८३ (ई. स.
(१) इण्डियन ऐगिटक्केरी, भाग १८, पृ. १९ (२) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा• ४, पृ. १०६ (३) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भाग ४, पृ. १०८, भा. १८, पृ. २२०; और भा. ४,
पृ. १० (४) अर्नल बंगाल एशियाटिक सोसाइटी, भाग ३१, पृ. १२३; और ऐपिग्राफिया
इण्डिका, भा. १८, पृ. २२५ (१) ऐपिग्राफिया इण्डिका, माग ४, पृ. ११० (4) जर्नल बंगाल एशियाटिक सोसाइटी, भाग ५६, पृ. १.८ । डाक्टर भण्डारकर
इसको वि. सं. ११८७ का मानते हैं। (.) जर्नल बंगाल एशियाटिक सोसाइटी, भाग ५६, पृ. ११४ (८) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भाग ४, पृ. १.. (1) अर्नल बंगाल एशियाटिक सोसाइटी, भाग २७, पृ. २४२ (१०) जर्नल विहार ऐगड मोडीसा रिसर्च सोसाइटी, भा. २, पृ. ४४५
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