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कनौज के गाहड़वाल
मदनपाल के तांबे के सिके ।
इन पर सीधी तरफ़ घुड़सवार की भद्दी तसवीर बनी होती है, और किनारे
पर “ मदनपालदेव " लिखा रहता है । उलटी तरफ़ चाँदी के सिक्कों की तरह
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का बैल और " माधव श्रीसामन्त " लिखा रहता है ।
इनका व्यास आधे इञ्च से कुछ बड़ा होता है ।
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५ - गोविन्दचन्द्र
यह मदनपाल का बड़ा पुत्र था, और उसके पीछे उसका उत्तराधिकारी हुआ । इसके समय के ४२ ताम्रपत्र, और २ लेख मिले हैं ।
इनमेंका पहला ताम्रपत्र वि. सं. ११६१ ( ई. स. ११०४ ) का, दूसरा वि. सं. ११६२ ( ई. स. १९०५ ) का, और तीसरा वि. सं. १९६६ ( ई. स. ११०९ ) का है । इन तीनों का उल्लेख इसके पिता मदनपालदेव के इतिहास में किया जा चुका है । उस समय तक यह युवराज ही था । इसलिए इसका राज्य वि. सं. ११६७ ( ई. स. १११० ) से प्रारम्भ हुआ होगा ।
चौथा, पांचवा, और छठा ताम्रपत्र वि. सं. १९७१ ( ई. स. १११४ ) का है । इन में से चौथे का एक पत्र ही मिला है। सातवीं वि. सं. १९७२ ( ई. स. १११६ ) का, और आठवाँ वि. सं. १९७४ ( ई. स. १११७ ) का है । यह देवस्थान से दिया गया था । इस में इसकी हस्ति - सेना का उल्लेख
(१.) कैटलॉग ऑफ दि कौइन्स इन दि इण्डियन म्यूज़ियम, कलकत्ता, भाग १, पृ. २६०, प्लेट २६ नं० १७
( २ ) इस से ज्ञात होता है कि, गोविन्दचंद्र ने गौड़ों को हराया था। इसकी वीरता से हम्मीर ( अमीर - मुसलमान ) भी घबराते थे ।
(३) लिस्ट ऑफदि इन्सक्रिपशन्स ऑॉफ नॉर्दन इण्डिया, नं० ६१२; ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा. ४, पृ. १०२; और भाग ८, पृ. १५३ । इनमें का दूसरा वाराणसी (बनारस) से दिया गया था ।
( ४ ) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भाग ४, पृ. १०४ ( ५ ) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भाग ४, पृ. १०५
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