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(४०) जिन प्रतिमाके निंदकोंको शिक्षा. भभ्भा भरम पडा है भारी, तत्त्वज्ञान नहीं भाया है। हिंसा हिंसा रटकर मुखसें, आज्ञा धरम भूलाया है। हिंसा दयाका भेद न जाने, भोलेको भरमाया है । सी०॥ २१ ॥ मम्मा मुनि श्रावक दो भेदे, धरम आगममें मान्या है। सम्यग् दृष्टि मुरगण संघ, चतुरविधे फरमाया है ॥ जिनके गुणगानेसें परभव, धरम सुलभ बतलाया है। सी० ॥२२॥ यय्या यह है पाठ ठाणांगे, औरभी यह फरमाया है। जो अवगुण बोलें सुरगणका, दुर्लभ बोधि कहाया है । अचरीज ऐसे पाठ योगसें, जरा न मनमें आया है । सी०||२३ ।। ररा रोरो नहीं छुटेगा, राह विना रमाया है । उन्मारगको मारग समजा, यही रणमें रोलाया है। अभुपूजाका त्याग कराके, रामाराज चलाया है। सी० ॥ २४ ॥ लल्ला लक्ष द्रव्यसें पूजा, 'वीरमभु जब जाया है। कल्प सूत्रका लाभ न माने, अवज्ञाकरके लुराया है । पिण तेतो प्रसिद्ध विलायत, लिख अंग्रेजो लुभाया है ।सी०॥२५॥ वन्या विधिसे काउसग वरणा, २आवश्यक विवराया है। दक्षिण हाथ मुहपत्ति बोले, बामे ओघा बताया है ।। लोकशास्त्र विरुद्धपणे ते, मुखपर पाठा बांध्या है। सी. ॥ २६ ॥
१-१४ पूर्व धरकी नियुक्तिके पाठमें-यह काउसग करनेकी विधि दिखाइ है । इसको तुम प्रमाण नहीं करते हो, तो पीछेमनाकल्पित मुखपर पाटा चढानेका ते कौन प्रमाण करेगा ? ॥ जो अपनी सिद्धि दिखानेको फिरते हो ? ॥
२ यशोविजयजीभी कहते है कि-सिद्धारथ राइं जिन पूज्या, कल्पसूत्रमा देखो । इत्यादि उनोंकी स्तवनकी दशमी गाथामें देखो ॥
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