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जिनप्रतिमाके निंदाकोंको शिक्षा. (४१) शश्शा शरमाता नहीं सांढा, सासा सांग सजाया है। तोभी शठ शउता नहीं मुके, जोर जूलम दरसाया है ।। एकको बांध अनेक को छोड़ा, क्या अज्ञान फसाया है। सी०॥२७॥ षष्षा षष्टे अंगे पूजा, द्रौपर्दाका दरसाया है। श्रावकका पदकमज्या है, पुल्लेषुल्ला आया है ॥ पाचुंजय पुंडरगिरि झाता सूत्रका पाठ भूसाया है । सी. ॥ २८ ॥ मस्सा संघ तजाया प्रभुका, अपना संघ सजाया है। जैन धरमसें विपरीत करके, शुद्ध बुद्ध विसराया है । कौशिक सम जिन सूरजसेती, द्वेषभाव सरजाया है। सी ।। २९ ॥ हहा हिया नहीं ढूंढक तुजको, हा ते जन्म हराया है। हलवे हालें हलवें चालें, पिण हालाहल पाया है ।। होस हटाकर श्रावक चितको, चक्कर चाक चढाया है। सी.॥३०॥ ढूंडक जनको शिक्षादेके, योग्य मारग बतलाया है। जो जो निंदक ढूंढक मुरख, तिनके प्रति जतलाया है ॥ कथन नहीं ए द्वेषभावसुं, सिद्धांत वचनसें गाया है। सी. ॥ १॥ तीर्थकर प्रतिमाका चितसें, भक्तिभाव दरसाया है।
और भी बोध किया है इसमें, सूचन मात्र दरसाया है। तीर्थकरका बल्लभने तो, दिन २ अधिक सवाया है।सी. ॥ ३२ ॥
॥ इति माधब ढूंढक उद्देशीने, केवल निंदक ढूंढकोंको, यह शिक्षाकी पत्रीसीसे समजाये है ।। संपूर्ण ।
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