________________
पुराने धर्म-गुरु और उनकी शिष्य-परम्परा ९७ अन्त में नरोपा को अपने परिश्रम का फल मिलकर रहा; लेकिन किस तरह ? उसको उसके गुरु ने नियमित रूप से शिक्षा. दीक्षा नहीं की। एक दिन-जब कि दोनों धूनी के पास बैठे थेएकाएक तिलापा ने अपना जूता उठाकर नरोपा के मुंह पर तड़ाक से दे मारा और एकदम आसमान के सब तारे और चन्द्रमा भी नरोपा को सूरज की रोशनी में ही दिखलाई पड़ गये और "सुगममार्ग" का प्रत्येक तत्व उसकी समझ में अपने आप आ गया। तिलापा को अपने शिष्य के इस ढङ्ग पर ज्ञान-चत् खालने की विधि 'त्स्-आन्' सम्प्रदाय के चीनी उपदेशकों के तरीके से बहुत कुछ मिलती-जुलती है। ___ बाद में नरोपा के बहुत से चेले हुए। किंवदन्तियों के अनुसार वह स्वयं बहुत ही दयालु गुरु था। अपने शिष्यों को वह अपनी बीती हुई-चेले बनने के समय की-कठिनाइयों का बयान बड़े चाव से सुनाता था और स्वयं उनके साथ बहुत अच्छा बत्ताव करता था।
मैं पहले कह चुकी हूँ कि तिब्बत में नरोपा लामा मार्पा के आध्यात्मिक गुरु की हैसियत से प्रसिद्ध है। इसी लामा मापा का शिष्य साधु-कवि मिलारेस्पा था जिसके धार्मिक गीत आज भी तिब्बत में सबसे अधिक लोकप्रिय हैं।
मिलारेसा को भी अपने गुरु मापो से उसी प्रकार हैरान होना पड़ा था जैसे नरोपा को अपने गुरु तिलोपा से; क्योंकि मार्पा नरोपा की भाँति दयावान् नहीं बल्कि उसका बिल्कुल ही उल्टा था। मिलारेस्पा को अपने आप पत्थर काटकाटकर अपनी पीठ पर ढो-ढोकर लाना था और उसे अकेले ही इनसे-बिना किसी की मदद लिये हुए-एक मकान खड़ा करने का हुक्म था।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, kurnatumaragyanbhandar.com