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प्राचीन तिब्बत बात नहीं टालता था और उसके वाक्यों को वेद की तरह प्रमाण सममता था। लेकिन तिलोपा ऐसा-वैसा गुरु तो था नहीं, जो इतनी आसानी से खुश हो जाय ।
इस प्रसङ्ग की एक अाखिरी कहानी और सुनाकर मैं समाप्त करूंगी। वह कुछ मजेदार भी है।
गुरु और चेले दोनों अपने रास्ते पर चले जा रहे थे कि उन्हें शादी करके लौटती हुई एक बारात दिखलाई पड़ी। उनके साथ में दुलहन की पालकी भी थी। तिलोपा ने नरोपा से कहा"मुझे उस औरत की जरूरत है। जाओ, उसे मेरे लिए उन लोगों से माँग लाओ।"
बिना एक क्षण रुके हुए नरोपा बारात के बीच में घुस गया और पालकी की ओर बढ़ा। पहले तो लोग यह समझे कि ब्राह्मण है, शायद आशीर्वाद देने जा रहा हो, उसे किसी ने रोका नहीं। पर जब नरोपा दुलहन का हाथ पकड़कर उसे पालकी से बाहर निकालकर एक ओर खींचने लगा तो किसी ने ईट, किसी ने पत्थर, किसी ने पालकी का बॉस या डण्डा-जिसे जो कुछ भी मिला-लेकर उसके ऊपर प्रहार करना आरम्भ किया। चारों
ओर से लोग उस पर टूट पड़े और मारते-मारते बेचारे को अधमरा कर दिया। हॉफते-हॉफते जब नरोपा गिर पड़ा तो वे उसे वहीं छोड़ पालको उठाकर चलते बने ।
होश में आ जाने पर किसी तरह दौड़कर जब नरोपा अपने सनकी गुरु के पास पहुँचा तो एक बार फिर उससे वही सवाल किया गया। "क्या तुम्हें अब भी मेरे साथ रहने का......"
और एक बार फिर गुरुभक्त चेले ने मस्तक नवाकर उत्तर दिया कि ऐसे गुरु का चेला कहलाने के लिए वह इस तरह की सैकड़ों मौतों का सामना हँसते-हँसते कर लेगा।
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