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प्राचीन तिब्बत जाती है और एकाएक पूछती है, "जो कुछ पढ़ रहे हो उसका कुछ मतलब भी तुम्हारी समझ में आ रहा है या योही"......
तिलोपा इस सवाल पर चौंक उठता है। उसे कुछ क्रोध भी आ जाता है, किन्तु इसके पूर्व कि वह कुछ कह सके, भिखारिन बुढ़िया उसकी किताब पर थूक देती है।
इस बार तो तिलोपा के बदन में सर से पैर तक आग ही लग जाती है। इसके क्या माने ? धर्मपुस्तक का इस प्रकार का अनादर करने की इस चुडैल की यह मजाल! वह उसकी लानत-मलामत करना शुरू करता है। इन सबका जवाब बुड्ढी केवल एक शब्द में देती है, जिसका कुछ अर्थ तिलोपा की समझ में नहीं आता। बुड्ढी किताब के पन्ने पर दुबारा थूकती है और उसके देखते देखते अदृश्य हो जाती है।
तिलोपा सोच में पड़ जाता है--यह बुड्ढो औरत कौन है ? वह जो कुछ कह गई, उसका कुछ अर्थ भी है ? जरूर होगा। क्या सचमुच वह जो कुछ पढ़ रहा है उसका असली मतलब उसकी समझ से बाहर है ? कौन जाने ! और विचित्र बुढ़िया कहाँ गुम हो गई? वह उसे ढूंढकर रहेगा। ___अस्तु, वह उसकी तलाश में निकल पड़ता है। चलते-चलते खोजते-खोजते वह उसे एक श्मशान में अकेली बैठी देख पाता है जहाँ अँधेरे में उसकी आँखें अङ्गारों की तरह चमकती थीं।
बुड्ढी तिलोपा को डाकिनियों की महारानी के पास जाने का आदेश करती है। अपने देश का रास्ता बताकर मार्ग में मिलनेवाली विपत्तियों से बचने के लिए वह उसे चलते-चलते एक मन्त्र भी बता देती है। ___ अपने रास्ते में तिलोपा को एक-दो नहीं सैकड़ों बाधाएँ मिलती है--नदी, नाले, बीहड़ वन, बनेले खू ख्वार जानवर, चक्कर
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