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मन्त्र-तन्त्र
नालजोर्पा ने अपने चारों ओर एक बार देखा; फिर उसकी निगाह पास पड़े हुए एक मुर्द की ओर गई। साफ मालूम होता था कि वह कुछ हिचक सा रहा है और उसकी हिम्मत उसे धोखा दे रही है। उसने एक गहरी साँस ली और कई बार माथे का पसीना हाथों से पोछा और तब अपने को झकझोरकर ऐसो मुखमुद्रा बना ली जैसे उसने अन्त में अपना साहस बटोर लिया हो। उसने अपनी तुरही उठाई और उसे बजाना शुरू किया। पहले धीरे-धीरे रुक-रुककर, फिर तेजी के साथ जोर-ज़ोर से । ___ "यह लो ! मैं अपना बदला चुकाये देता हूँ" एकाएक वह चिल्लाया-"लो, अब तक मैंने तुम्हें खाया है। अब तुम्हारी बारी है। मुझे खाओ। आओ, भूखे भेड़ियो, आओ। ___ "आओ मैं, तुम्हें दावत देता हूँ। जल्दी आओ और मेरे शरीर का मांस नोच नोचकर खा जाओ। मैं तुम्हें बुला रहा हूँ। ___"यह लो, यहाँ मैं तुम्हारे लिए पके खेत, हरे-भरे जङ्गल, खिले हुए फूलों का बगीचा सफेद और लाल भोजन और वस्त्र दोनों दता हूँ। खाओ । खाओ। आओ!" । ___ अब त्रापा पूरे आवेश में आ गया था। उसने जोरों से अपना कांगलिंग बजाया और इस जोर से चीख मारकर वह ऊपर उछला कि जल्दी में उसका सिर छोटे तम्बू की छत से टकरा गया और तम्बू उसके ऊपर गिर पड़ा। कपड़ों के भीतर वह थोड़ी देर तक हाथ-पैर मारता रहा, फिर पागलों की तरह गम्भीर और भयानक चेहरा लिये हुए उसके बाहर निकला। अब रह-रहकर वह हाथ-पैर फेंक रहा था और कभी-कभी रह-रहकर कराह उठता था। स्पष्ट था कि इस समय वह बड़ी भारी यन्त्रणा में है। मैंने अब समझा चोड़ हँसो-खेल नहीं है। वह बेचारा भूखे भूतों को अपने शरीर में दाँत गड़ा-गड़ाकर मांस काट-काटकर खाते हुए
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