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प्राचीन तिब्बत ऊपर और ऊपर से भी ऊपर अपर लोक को चले गये। श्रोऽम् ! स्वाहा !!"
कुछ देर के बाद डमरू के डमडम का गम्भीर शब्द भी धीमा पड़ा और धीरे-धीरे एकदम रुक गया। नालजोपा अब समाधि को अवस्था में चला गया। कुछ समय के बाद फिर चैतन्य होकर उसने अपना जन सभाला। बायें हाथ में कांगट्टङ और दाये में डमरू ऊपर ऊँचा उठाकर वह इस प्रकार खड़ा हो गया जैसे किसी अदृश्य शत्रु को युद्ध के लिए ललकार रहा हो। ____ "मैं, निर्भय नालजोर्पा", उसने जोर से पुकारकर कहा"मैं स्वयं को, देवों को और दानवों को यो कुचल देता हूँ।" उसकी आवाज और ऊँची हुई-"ओ लामा, नालजोर्पा, चापा और खादोमा आओ, आओ तुम सब आओ और सब के सब इस नृत्य में मेरा साथ दो।" ____ अब उसने अपना नृत्य शुरू किया। वह चारों कोनों की ओर चार बार मुका। कहता गया "मैं गर्व के दानव को कुचलता हूँ। क्रोध के दानव को, विषय और मूर्खता के दानवों को भी कुचलता हूँ।" ____ हर एक "कुचलता हूँ" के साथ-साथ सचमुच वह जोरों से पैर को पृथ्वी पर दे मारता था और 'त्सेनशेस त्सेन' का उच्चारण करता जाता था। ___ उसने अपना लबादा, जो जमीन में लिथड़ रहा था, फिर सभाला और डमरू और तुरही को एक ओर रख दिया। मन्त्रों का उच्चारण करते-करते उसने अपने हाथ से एक छोटा सा तम्बू खड़ा किया। तम्बू के सफेद कपड़े में तीनों कोनों में लाल और नीले रंगों में 'ओं, आ' और 'हुँ लिखा हुआ था। पाँचों अर्थ रखनेवाले रंगों-लाल, नीला, हरा, पीला और सफेद-को बहुत सी झालरें छत से लटक रही थीं।
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