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मन्त्र-तन्त्र
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विस्मृति हैं-उसी गड्ढे में फिर डूब जावें-उसे इनसे कुछ सरोकार नहीं है। इस शान्त और मूक आत्म-त्याग के साथ-साथ बलि पर चढ़ जाने का घमण्ड दूर हो जाता है और इस क्रिया की समाप्ति होती है।
कुछ लामा इसी चोड़ को करने के लिए १०८ श्मशानों और १०८ उपयुक्त झीलों की खोज करते-करते सारा तिब्बत देश ही नहीं बल्कि चीन, जापान और नैपाल तक का चक्कर काट आते हैं। और चाहे जो कछ हो, लेकिन चोड़ की इस विधिवत् क्रिया में जो गूढ रहस्य छिपा है उससे कोई इन्कार नहीं कर सकता। __ संयोगवश मुझे स्वयं अपनी आँखों से चोड़ की क्रिया को बहुत समीप से देखने का अवसर प्राप्त हुआ है। मेरे पास का मक्खन समाप्त हो गया था और इसकी खोज के लिए मुझे स्वयं बाहर जाने का कष्ट करना पड़ा था। उस समय मैं उत्तरी तिब्बत में यात्रा कर रही थी और हमारा पड़ाव एक बड़ी थांग* में पड़ा हुआ था। ___ एकाएक वाटी की निःस्तब्धता को बेधती हुई एक आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। आवाज कुछ भयानक और कर्कश थी। कई बार यह आवाज आई और डमरू का डमडम शब्द भी कुछ देर के बाद सुनाई पड़ा। ___ एकाएक मुझे खयाल आया चोड़ का; चोड़ के अलावा कोई दूसरी बात हो ही नहीं सकती। मैं आवाज को लक्ष्य करके आगे बढ़ती गई। धीरे-धीरे शब्द भी साफ-साफ़ सुनाई पड़ने लगे।
आसपास की पहाड़ी जगह ऐसी थी कि मुझे वहाँ उसके बहुत समीप ही की एक चट्टान के नीचे दबे पाँव जाकर छिपकर बैठ रहने का अवसर मिल गया। अब मैंने सतर्क होकर सब कुछ अपनी आँखों से देखना शुरू किया। कोई प्राज्ञपरामित की प्रशंसा में मन्त्र पढ़ रहा था-"ओऽम् ! प्राज्ञदेव गये, चले गये।
* थांग = पहाड़ी चट्टानों या चौड़ी घाटी के बीच का सपाट मैदान।
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