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मन्त्र-तन्त्र
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की जाँघ की हड्डी के बने हुए एक बिगुल ( कागलिंग ) के बजाने का तरीका आना चाहिए।
स्थान के अभाव से मैं चोड़ के मन्त्रों का अनुवाद दे सकने में असमर्थ हूँ । इसमें बड़े लम्बे-लम्बे वाक्य होते हैं जिनको दुहराने के साथ ही साथ साधक नालजोर्पा “पैरों के नीचे" अपनी समस्त मनोवृत्तियों को "कुचल देता है" और अपने सम्पूर्ण स्वार्थ भाव की हिंसा कर डालता है। इस क्रिया का सबसे मजेदार हिस्सा वह है जिसमें इसे करनेवाला अपना बिगुल बजा-बजाकर भूखे भूतों को निमन्त्रण में सम्मिलित होने के लिए बुलाता है ।
वह कल्पना करता है कि एक चुड़ैल, जो वास्तव में उसकी अपनी इच्छाशक्ति के अतिरिक्त और कुछ नहीं है, उसके सर के ऊपरी हिस्से से निकलकर उसके सामने खड़ी हो गई। इस चुड़ैल के हाथों में एक तलवार होती है जिससे वह एक वार में उसका सर धड़ से अलग कर देती है और तब जब तक कि मुण्ड के मुण्ड भूत, वैताल आदि इस भोज के पास आकर इकट्ठा होते रहते हैं वह उसके और अंगों के टुकड़े-टुकड़े करके काटती है । खाल खींचकर अलग करती है, पेट की चीर-फाड़ करती है । अंतड़ियाँ अलग गिर पड़ती हैं। खून की नदी बह जाती है और भोजक जहाँ-तहाँ शोर करते हुए नोच-खसोट करने में लग जाते हैं। इसी बीच में साधक इस प्रकार के वाक्यों से उन्हें उत्तेजित भी करता रहता है
" जन्म-जन्मान्तर में आज तक न जाने कितनी बार अपने शारीरिक सुख के लिए, अपने को मृत्यु के मुख से बचाने के लिए, मैंने न जाने कितने जीवों को सताकर अपने खाने-पीने और रहने का प्रबन्ध किया होगा । श्राज मैं अपने इन सब कर्मों का
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