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प्राचीन तिब्बत
इसी तरह तीन दिन भूख-प्यास में पहुँचता तो उसका
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कर चिल्लाना भी था । बिताकर जब वह अपने गुरु लामा के पास फ़ैसला होता ।
जिस शिष्य का उल्लेख पीछे किया गया है उसे फ़ैसला सुनने के लिए अधिक समय तक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी। पहले ही दिन एक चीते ने आकर उसे चीर-फाड़कर खा डाला। लेकिन यह चीता थाग्स-यांग ही था या कोई दूसरा जानवर - इसके सोचने को किसी ने आवश्यकता नहीं समझी ।
अगर यह मान भी लिया जाय कि बहुत सी अनहोनी बातें सचमुच की कभी-कभी घट जाती हैं तो भी यह निश्चय है कि ऐसे अवसर कम आते हैं। असल बात तो यह है कि जिस तरह से लगातार कई घण्टों बल्कि दिनों तक ये लोग सुनसान डरावनी जगहों में भूतों का आवाहन करते रहते हैं, उससे इन लोगों के पलपल पर भूतों और चुड़ैलों के आ जाने का भ्रम हो जाना स्वाभाविक बात नहीं है ।
एक बार
मैंने इस सम्बन्ध में कई लामाओं से प्रश्न किये। मुझे बतलाया गया कि विश्वास और विश्वास दोनों आवश्यक श्रङ्ग हैं। पहले भूतों की सत्ता में विश्वास रखना होता है और बाद को अविश्वास । लेकिन अगर ठीक समय से पहले अविश्वास विश्वास की जगह ले ले तो सारा किया-कराया मिट्टी में मिल जाता है; अर्थात् निर्भयता प्राप्त करने की सारी पिछली युक्तियाँ निरर्थक सिद्ध हो जाती हैं
गा (पूर्वी तिब्बत) के एक गोमछेन से, जिनका शुभनाम कुशोग् वांगछेन् था, इस प्रकार के भय से होनेवाली आकस्मिक मृत्यु के सम्बन्ध में मेरी बातचीत हुई ।
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