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मन्त्र-तन्त्र
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मालूम हुआ जैसे खञ्जर से कुछ दूर के अन्तर पर कोई शक्ल आगे को बढ़ रही है । कोई लामा मालूम पड़ता था। दबे पाँव आगे बढ़कर उस लामा ने खञ्जर के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि एक क्षण में झपटकर - इसके पहले कि वह फुर्बे पर हाथ लगाये – मैंने उसे उखाड़ लिया ।
खवर था ही इतना बढ़िया कि उसे देखकर किसी आदमी का ईमान बदल जाय । यह आदमी सम्भवतः अपने और साथियों की अपेक्षा कम डरपोक था । उसने सोचा होगा कि मैं सो रही हूँ -- खञ्जर हथियाने का यह अच्छा मौक़ा है। और वह उसे चुराकर बेच देगा ।
एकाएक मुझे एक बात सूझी। मैं तुरन्त तम्बू के भीतर लौट आई। जो आदमी अभी-अभी बाहर से आवेगा या आया होगा, वही चोर है
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तम्बू में पहुँचकर मैंने देखा सभी पालथी मारे बैठे थे और सर हिला हिलाकर भूत प्रेत आदि को दूर रखने के लिए मन्त्रों का पाठ कर रहे थे ।
मैंने चौङ्गदेन का पास बुलाकर पूछा - "इनमें से कौन कुछ देर पहले बाहर गया था ?" "कोई नही ।" उसने कहा- "डर के मारे ये अधमरे हा रहे हैं। नित्य कर्मों के लिए तम्बू के बाहर निकलने की भी किसी की हिम्मत नहीं हुई।"
“ओहो, तब क्या मैं सपना देख रही थी ?" मैंने स्वयं साचा । फिर ज्यों का त्यों सब हाल सब लोगों से कह सुनाया ।
"अर्रर" सब के सब एक स्वर में चिल्ला पड़े- “निश्चय हा वे हमारे बड़े लामा थे । उन्होंने अपना फुर्वा वापस लेना चाहा होगा । शायद उसे पा जाने पर वे वहीं आपका अन्त भी कर
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