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प्राचीन तिब्बत टॉग तोड़ ली थी। मठ के आँगन में झण्डे का जो बॉस था वह अपने आप टूट गया था और इससे बढ़कर बुरा असगुन दूसरा कोई हो ही नहीं सकता था। लोगों ने किसी तरकीब से इस खजर को एक बक्स में बन्द कर दिया था और किसी देवस्थान के समीप एक गुफा में छोड़ने के लिए ले आये थे। इस देवस्थान के आसपास के गाँववालों ने जब यह वृत्तान्त सुना तो वे मरने-मारने को तैयार हो गये।
बेचारे त्रापा-जो मन्त्रों से अभिमन्त्रित काराज के सैकड़ों पन्नों की तह में लपेटकर, एक सन्दूकची में रख ऊपर से मुहर आदि लगाकर, किसी प्रकार इस खचर को यहाँ तक ले आये थेघबरा गये कि अब क्या करें! इस जादू के खसर को एक बार देखने के लिए मेरी उत्सुकता बढ़ गई। _ "मुझे अपना फर्बा दिखा दो" मैंने कहा--"शायद मैं तुम्हारी कुछ सहायता कर सकूँ।"
पर खजर को बक्स से बाहर करने का उनको साहस नहीं हुआ। बहुत कहने-सुनने पर उन्होंने मुझे स्वयं अपने हाथों से उसे निकालने की अनुमति दे दी।
फुओं पुरानी तिब्बती कला का एक अच्छा नमूना था-देखने में बहुत ही सुन्दर। मेरी इच्छा उसे अपने पास रखने की हुई। पर मैं जानती थी कि त्रापा लोग उसे किसी तरह देने को राजी न होंगे। उसी रात को सबेरा होने से कुछ पहले ही खञ्जर को लेकर मैं चुपचाप तम्बू के बाहर कुछ दूर निकल गई। मैंने उसे एक स्थान पर गड़ा दिया और उसे हथियाने की कोई तरकीब सोचने लगी। ___ मुझे वहाँ इसी प्रकार बैठे-बैठे कई घण्टे बीत गये। मेरी आँखें भी नींद के भार से मँपने लगी। एकाएक मुझे ऐसा
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