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प्राचीन तिब्बत पर इस बात का कोई पक्का प्रमाण नहीं था कि यह जीभ वैसी हो लाश की थी।
जो भी हो, तिब्बतियों का विश्वास है कि रोलैङ् की क्रिया में सचमुच ये सब बातें होती हैं। __इनका तो यह भी कहना है कि मन्त्र के बल से जगाये जाने के अलावा लाश अपने आप उठकर खड़ी हो सकती है और जीवित प्राणियों को हानि पहुँचा सकती है। यही कारण है कि किसी के मरने के बाद उसकी लाश की देख-रेख करने के लिए कुछ लोग नियत कर दिये जाते हैं और वे बराबर मन्त्रों का जाप करते रहते हैं।
शेपोगों के एक त्रापा ने मुझे निम्नलिखित घटना सुनाई थी"लड़कपन में ही उसे एक गुम्बा में चेले की हैसियत से रहना पड़ा था। एक बार वह अपने यहाँ के तीन लामाओं के साथ एक मरे हुए आदमी के घर गया। लामा लोग लाश के हटाने के समय के
आवश्यक संस्कारों के लिए बुलाये गये थे। कुछ रात बीत जाने पर कमरे के एक कोने में तीनों लामा सो गये। उसी कमरे के दूसरे कोने में लाश कान में यन-पूर्वक बाँधकर रख दी गई थी।
"मन्त्रों का बराबर पाठ करते रहने का काम मुझे सौंपा गया था। आधी रात होते-होते मुझे नींद लगने लगी और थोड़ी देर के लिए मेरी आँखें फंप गई। एक हल्की आवाज़ से चौंककर मैं सजग हो गया। एक काली बिल्ली लाश के पास से होकर निकली और कमरे के बाहर चली गई। मेरे कानों को ऐसा लगा जैसे कहीं कोई कपड़ा चीरा जा रहा हो। एकाएक मैंने लाश को हिलते हुए देखा। कफन को फाड़कर उसमें से एक हाथ निकला
और सोते हुए उन आदमियों की ओर बढ़ा......। डर के मारे मैं सूख गया और एक छलाँग में कूदकर कमरे से बाहर हो गया।
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