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प्राचीन तिब्बत ___ बात यह है कि जिन लोगों की आध्यात्मिकता बहुत ऊँचे दर्जे को पहुँच जाती है, उनके शरीर का मूल तत्त्व ऐसी वस्तु में परिवर्तित हो जाता है कि उसमें कई विशेष गुण आ जाते हैं। ऐसे लोगों के शरीर के मांस का एक टुकड़ा भी अगर खाने को मिल जाय तो उससे अपने में अद्भुत चामत्कारिक शक्तियों आ जाती हैं और एक अलौकिक आनन्द का अनुभव होता है।
एक संन्यासी ने मुझे यह भी बतलाया कि कभी-कभी नालजो लोग ऐसे लोगों को ढूंढकर मिलते हैं और उनसे इस बात की प्रार्थना करते हैं कि मरने के पहले वे अपने बारे में पता दे दें जिससे उनके शरीर के मांस का एक टुकड़ा उन्हें भी सुलभ हो सके। __ सोचने की बात है कि ऐसे बहुमूल्य पदार्थ को पाने की प्रतीक्षा लोग कब तक करते होंगे । शुभस्य शीघ्रम्-प्रतीक्षा करना भला किसी को अच्छा भी लगता है ?
और सचमुच मुझे बतलाया गया कि कभी-कभी लोग प्रतीक्षा करते-करते थक जाते हैं और ठीक समय से कुछ पहले ही अपना प्राप्य पा लेते हैं।
___ नाचती हुई लाश लाश नचाने के लिए तिब्बती रोलैङ नाम की क्रिया करते हैं। रोलैङ एक ऐसी क्रिया का नाम है जिसमें लाश उठकर खड़ी हो जाती है। रोलैङ कई प्रकार के होते हैं। रोलैङ् और त्रौंगजग दोनों बिलकुल अलग-अलग चीज हैं। त्रौंगजग में दूसरे किसी प्राणी की आत्मा लाश में आ जाती है और रोलैङ् में देह में पहलेवाली आत्मा ही प्रवेश करती है। ऐसा लामाओं और तान्त्रिको का विश्वास है। एक डा-ग-स्पा से मुझे रोलैक के बारे में सारी
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