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मन्त्र-तन्त्र
त्रापा ने कहा, "अंधेरा बढ़ गया है और देरी हो गई है। कल सबेरे तड़के ही चल देंगे।"
"जवाव मत दो। जल्दी आओ और चलो', चोग्स त्सांग ने कह दिया।
घोड़े आये और दोनों अधेरे में चले। एक नदी के पास पहुँच कर वे घोड़े से उतर पड़े। चोग्स त्साङ्ग नदी के किनारेकिनारे आगे-आगे चला और पीछे पीछे उसका चेला। ____ यद्यपि आकाश में बिलकुल अँधेरा छाया हुआ था, परन्तु पानी में एक जगह "सूर्य की किरणों का प्रकाश" पड़ रहा था। उस प्रकाश में नदी के प्रवाह के विरुद्ध-उल्टी बहती हुई एक लाश दिखलाई पड़ी। लाश बाहर निकाली गई और चोग्स त्सांग ने कहा-"अपना चाक़ निकालो। इसमें से एक टुकड़ा मांस काटो और उसे खा जाओ। मेरा एक ग्य-गर पा ( भारतवासी) दोस्त आज ही के दिन यहाँ इसी प्रकार भोजन भेजता है।"
उसने स्वयं एक टुकड़ा काटा और उसे खाने लगा। त्रापा डर से काँप उठा। उसने भी अपने गुरु का अनुकरण करना चाहा लेकिन मांस के टुकड़े को मुंह में रखने की उसकी हिम्मत नहीं हुई। उसने उसे अपने अम्बग (लबादे के भीतर ) में छिपा लिया। ___ सबेरा होते-होते दोनों मठ को वापस लौटे। लामा ने त्रापा से कहा___ "मेरी इच्छा थी कि तुम भी कुछ प्रसाद पा जाते; लेकिन तुम उसके योग्य नहीं हो। तभी तुमने अपना हिस्सा मुंह में रखने के बजाय चुपके से कपड़ों में छिपा लिया है। ___ यह सुनकर त्रापा को अपनी भूल पर बड़ा पछतावा हुआ। उसने अपने को कोसते हुए मांस के टुकड़े के लिए अम्बग में हाथ डाला। पर वह वहाँ नहीं था।
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