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चौथा अध्याय
मन्त्र-तन्त्र
तिब्बत देश की बड़ी जनसंख्या मन्त्र-तन्त्र, भूत-प्रेत, टोने-टटके
आदि में पूरा विश्वास रखती है। जादूगर लोगों की तरह-तरह की क्रियाएँ होती हैं और इनमें शवों की आवश्यकता पड़ती है। कुछ लोगों का कहना है कि इन अनोखे मन्त्रों और रहस्य-पूर्ण रूपकों के पर्दे के पीछे ईश्वरीय ज्ञान से सम्बन्ध रखनेवाली विद्या छिपी हुई है। पर वस्तुत: इस प्रकार के उलटे अध्यात्मवाद का बौद्धधर्म से कोई सम्बन्ध नहीं है। लामा-धर्म के अन्तर्गत भी ये बातें नहीं आती, यद्यपि चुपके-चुपके कई लामा इन क्रियाओं की सिद्धि के लिए उद्योग करते रहते हैं। इस तरह के विचित्र धर्म का मूल रूप भारतवर्ष के हिन्दू तांत्रिकों और पुरानी येन-धर्मशाखा के सिद्धान्तों में अलबत्ता मिलता है।
नीचे की कहानी चेटकू में मेरे सुनने में आई। मिनियाग्यार ल्हाखा के महन्त चोग्स् त्सांग के बारे में यह प्रसिद्धि है कि उसने कुछ भविष्यवाणियाँ की थीं, जो ठीक समय पर तिब्बत, चीन और संसार के और कोनों में ठीक उतरेंगी। उसकी शक्तियों अद्भुत थी और आदतें अनोखी। उसकी बेढङ्गी बातों का मतलब सबकी समझ में नहीं आता था।
एक दिन शाम को एकाएक उसने अपने एक त्रापा को बुलाया।
"दो घोड़ों को तैयार करो। हमें अभी चलना है", उसने आज्ञा दी।
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