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तिब्बत को एक प्रख्यात गुम्बा के धार्मिक स्थानों की यात्रा करके अब पहाड़ी पर स्थित अपने पुराने विहार को वापस लौट रहा है। ___उसने उस लामा को इन सब बातों की याद दिलाई। अपनी उस यात्रा, दूर की गुम्बा और बहुत सी और बातों के बारे में विस्तार-पूर्वक अनेक कहानियाँ कह सुनाई।
शीघ्र ही वह और आवश्यक परीक्षाओं में पास उतरा और बिना किसी हिचकिचाहट या भूल के पुराने लामा की चीज़ उसने पहचान ली।
मङ्गोलों के मन में किसी प्रकार का कोई सन्देह नहीं रह गया। प्रसन्नता से उन्होंने अङ्गारी के उस यात्री को अपना प्रधान मान लिया और दूसरे ही दिन मैंने काफिले के ऊँटों को अपनी उसी सुस्त चाल से धीरे-धीरे गोबी के रेगिस्तानी मैदान में दूर पर जाकर अन्तरिक्ष में अदृश्य होते देखा। नया लामा तुल्कु अपने भाग्य का उपभोग करने जा रहा था।
कम्बम की गुम्बा में और कई विचित्र बातें देखने में आई। इस स्थान का यह नाम कैसे पड़ा-इसको भी कहानी बड़ी रोचक है।
कम्बम को गुम्बा में एक बहुत पुराना पेड़ है जिसके कारण इसका नाम और दूर दूर तक फैल गया है। इस विचित्र और विस्मय-पूर्ण वृक्ष की कथा इस प्रकार है___ आम्दो सन् १५५५ में उत्तरी-पूर्वी तिब्बत. में-जहाँ आज कम्बम को विशाल गुम्बा स्थित है-(गेलुग्स-पा) पीलो टोपीवाले सम्प्रदाय के प्रवर्तक सौंग खापा का जन्म हुआ।
जन्म-दिवस के कुछ दिनों बाद ही लामा दबछेन कर्मा दोर्ज ने भविष्यवाणी की कि यह बालक बहुत ही होनहार होगा। उसके माता-पिता को उन लोगों ने आदेश दिया कि जिस स्थान पर बालक का जन्म हुआ है वह खूब साफ-सुथरा रक्खा जाय ।
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