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प्राचीन तिब्बत ___ लामा तुल्कु एक सुन्दर नौजवान और लम्बे डील-डौल का
आदमी था। दक्षिणी-पश्चिमी तिब्बत में अङ्गारी प्रान्त में उसका घर था और उसका नाम था 'मिग्युर'।।
मिग्युर बचपन से ही कुछ चिन्तित रहता था। उसका विश्वास था कि उसे जहाँ होना चाहिए था, वह वहाँ नहीं है । अपने गाँव में और अपने सगे सम्बन्धियों के बीच में वह अपने आप को बाहरीसा अनुभव करता था। स्वप्न में वह उन प्राकृतिक दृश्यों, बलुहे रेगिस्तानों और पहाड़ों पर बनी हुई एक बड़ी गुम्बा आदि, आदि ऐसी वस्तुओं को देखता रहता था जिनका अङ्गारी में कहीं चिह्न तक नहीं था। जब वह जागता होता तब भी उसकी आँखों के सामने ऐसे हो चेतना-सम्बन्धी काल्पनिक चित्र नाचते रहते। ___ जब वह छोटा ही था तो अपने घर को छोड़कर भाग खड़ा हुआ। उसने कई स्थानों को धूल फॉकी, आज यहाँ कल वहाँ; पर कहीं एक जगह पर उसका मन नहीं लग सका। जो मृग-मरीचिका उसे अपने भुलावे में डाले हुए थी वह अभी दूर से हो उसे ललचा रही थी।
आज वह एरिक से चलकर उसी तरह निरुद्देश्य घूमताघामता यहाँ तक आ पहुँचा था।
उसने सराय देखो, काफिले के पड़ाव को और आँगन में खड़े ऊँटों को भी देखा। एक अज्ञात प्रेरणा न उसे सराय के भीतर पहुँचाया और उसने फाटक के भीतर घुसते ही अपने सामने खड़े एक वृद्ध लामा को देखा। और तब एकाएक बिजली की तेजी के साथ उसके दिमाग में सारी बातें घूम गई। पुराने विचार याद हो आये। उसे ऐसा मालूम हुआ जैसे वह बूढ़ा लामा उससे कम उम्र का और उसका चेला है। वह स्वयं उसका गुरु है और उसके बाल बुढ़ापे के कारण सफेद हो गये हैं। वह दोनों तिब्बत
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