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प्राचीन तिब्बत
थोड़ी देर सुस्ताने के लिए एक असामी के घर में ठहर गया । चाय तैयार होने के लिए चढ़ा दी गई और नियर्पा ( गुमाश्ता ) अपनी जेब से सुँघनी को डिबिया निकालकर चुटकी में ले ही रहा था कि कस्मात् कोने में खेलते हुए एक छोटे बालक ने डिबिया पर हाथ रखकर बड़े रोब से कहा -- "तुम मेरी डिबिया अपने पास क्यों रक्खे हुए हो ?"
गुमाश्ता भौंचक्का सा रह गया । सचमुच डिबिया उसकी अपनी नहीं, अग्नेयत्सांग की हो थी। उसे हड़पने का उसका अभिप्राय नहीं था, परन्तु वह उसे अपने प्रयोग में अवश्य लाता था । वह काँपने लगा ।
"मेरी चोज तुरन्त मेरे हवाले करो ।” लड़के ने और अधिक अधिकार जताते हुए कहा । डर के मारे काँपते डर के मारे काँपते हुए किंकर्तव्यविमूढ़ अन्ध-विश्वासी गुमाश्ते से घुटने टेककर माको हो माँगते
बन पड़ा ।
इसके कुछ दिन बाद ही मैंने उस लड़के को शान के साथ एक बढ़िया काले टट्टू पर सवार होकर अपने पुराने घर में बड़े समारोह से आते देखा । टटट्टू के आगे-आगे था . खुद गुमाश्ता और वह अपने हाथों में उसकी लगाम लिये हुए था ।
मैंने एक और तुल्कु के इससे भी बढ़कर आश्चर्यजनक और अनूठे ढङ्ग से आन्सी से कुछ मील की दूरी पर एक छोटो सराय में अकस्मात मिल जाने की घटना अपनी आँखों देखी।
उस हिस्से में मङ्गोलिया से तिब्बत जानेवाली सड़कें पेकिङ्ग और रूस के बीच की लम्बी सड़क से आकर मिलती हैं। इसलिए जब मैं सूर्य डूबने से कुछ पहले एक सराय में पहुँची और उसे पहले से ही मङ्गोलों के एक काफिले के लोगों से भरा हुआ पाया तो मुझे बुरा तो बहुत लगा, लेकिन इस पर कोई अचम्भा नहीं हुआ ।
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