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तिब्बत की एक प्रख्यात गुम्बा लामा तुल्कु न तो बहुत पुराने हैं और न एकदम नये। सन् १६५० के बाद से इनका नाम सुन पड़ता है।
गेलुग्स पा (पीली टोपीवालों) के पाँचवें बड़े लामा को मंगोलों ने और चीन देश के महाराज ने तिब्बत का शासक स्वीकार कर लिया। पर इस सांसारिक वैभव और ऐश्वर्य से लोबज़न्ग ग्यात्सो की परितुष्टि न हुई। उन्होंने अपने को बोधिसत्त्व छेनरे। जिग्स* का अंश घोषित किया। साथ ही साथ अपने धार्मिक गुरु को ताशिलहुन्पो का बड़ा लामा बनाकर उनके प्रोद्पग्मेद* का तुल्कु हाने की प्रसिद्धि की।
जो और बड़ी-बड़ी गुम्बाएँ थी उन्होंने भी शीघ्र ही अपनाअपना मान बढ़ाने के लिए अपने यहाँ किसी न किसी बड़े लामा या बोधिसत्त्व का अवतार कराना जरूरी समझा। इस प्रकार गुम्बाओं में तुल्कु होने की प्रथा चली। ___दलाई लामा, ताशिल्हुन्पा के बड़े लामा, महिला दोर्ज फाग्मोये बोधिसत्त्वों के तुल्कु हैं। देवी-देवताओं, दानवों और परियों के तुल्कु ( खाधोम ) इनसे नीचे की श्रेणी के हैं।
'तुल्कु' का शाब्दिक अर्थ होता है जादू का बना हुआ कोई आकार । मैं पहले अध्याय में बता चुकी हूँ कि (१९१२ में ) दलाई लामा से मेरी मुलाक़ात हुई थी तो उन्होंने मेरी शंकाओं का भरसक समाधान किया था और मेरे कुछ सवालों का जवाब भी एक लम्बे पत्र में लिखकर देने की कृपा की थी। ___ दलाई लामा के इसी लम्बे पत्र में से मैं यह अंश उद्धृत करती हूँ
*छेनरेज़िग्स और श्रोद पग्मेद का क्रम से संस्कृत में अवलोकितेश्वर और अमिताभ नाम है।
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