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तिब्बत की एक प्रख्यात गुम्बा इन शास्त्रार्थों के बार में एक बात और बता देन के योग्य है । "ववाद हो चुकने पर सभा भर में विजेता विजित के कन्धों पर बैठाकर चारों ओर घमाया जाता है।
न्यि-उद कालेज के छात्रों का देश में बड़ा मान रहता है। ये -युदपा कहलाते हैं। लोगों का विश्वास है कि बड़े-बड़े कुपित देवताओं के क्रोध को शान्त करने में ये ही समर्थ हो सकते हैं और वहार को रक्षा का भार भी इन्हीं पर रहता है; क्योंकि भूत-प्रेत-बाधा का निवारण इनके सिवा और काई कर ही नहीं सकता। ___ इन विहारों में दो तरह के भिक्षु हात हैं-गलुरस-पा अर्थान बोलो टोपीवाले–जिन्हें विवाह करने की मनाही है और लाल टोपीबाले। इस सम्प्रदाय के भिक्षयों को, जिन्हें गेलोऽङ् कहते हैं. विवाहित जीवन व्यतीत करने की आज्ञा है। लेकिन ये भी अपने बाल-बच्चों को अपने साथ नहीं रख सकते । विहारों से बाहर उनके लिए अलग घर बने रहते हैं। लङ्का के विहारों या और किसी देश के मठों की भाँति य तिब्बती गुम्बाएँ भो उन लोगों के भरने के लिए बनती हैं जो आध्यात्मिक तत्त्वों की खोज में लगे रहते हैं। अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए हर एक भिन चाह जस माग का सहारा ले सकता है। उसके लिए काई एक निर्दिष्ट
नहीं निर्धारित रहता। ___ अपना-अपनी कोठरियां में अलग-अलग भिक्षुगण मन्त्र-तन्त्र जगात हैं और जिस ढङ्ग से चाहते हैं, ज्ञान-मार्ग का ढ़ते हैं। इस विपय में उनके गुरु के अतिरिक्त और किसी को कुछ बोलने का अधिकार नहीं होता। और तो और, कोई उसके व्यक्तिगत विचारों के विषय में भी पूछताछ नहीं कर सकता। वह चाहे जिस सिद्धान्त का पक्षपाती हो-एकदम नास्तिक हो क्यों न हो--उस किमी से कोई सरोकार नहीं।
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