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प्राचीन तिब्बत छोटी-मोटी गुम्बाओं से विद्याध्ययन प्रारम्भ करनेवाले चेलों को ऐसी सुविधाएँ सुलभ नहीं रहती; क्योंकि इनकी ओर से इस प्रकार के कोई कालेज नहीं बने होते। मठ में रह चुकने के बाद वे जब जहाँ चाहें, चले जा सकते हैं।
भिन्न-भिन्न विद्यालयों में भिन्न-भिन्न विषय पढ़ाये जाते हैं(१)त्सेन कालेज में दर्शन-शास्त्र और मनोविज्ञान ।
(२) ग्यि-उद् कालेज में तंत्र-शास्त्र ( जादूगरी ) की शिक्षा दी जाती है।
(३) मेन कालेज में चीनी और भारतीय पद्धति के अनुसार वैद्यक की पढ़ाई होती है।
(४) दोन कालेज में धर्म-शास्त्र के अध्यापक मिलते हैं।
व्याकरण, गणित और अन्य विविध विषय इन विद्यापीठों से बाहर कुछ अध्यापक अपने घर पर ही पढ़ाते हैं।
नियत तिथियों पर फिलासफी के छात्रों में परस्पर वाद-विवाद हुआ करता है। इसके लिए चारों ओर दीवालों से घिरे हुए खास तौर के बागीचे बने हुए होते हैं। इन विवादों में अपनी बात कुछ कम ही कही जाती है। प्राय: धर्मग्रन्थों के बड़े लम्बे-लम्बे उद्धरण ही दुहराये जाते हैं। लेकिन उनके कहने का ढङ्ग ऐसा होता है कि मालूम पड़ता है मानों बड़ी गरमागरमी के साथ सवाल-जवाब चल रहे हैं। प्रश्न करते समय हाथ पर हाथ मारने की, पृथ्वी पर पैर पटकने की और बाहों के चारों ओर माला घमान की विचित्र प्रणाली होती है। उत्तर देने के समय भी एक खास ढङ्ग से कूद-फाँद मचाने का तरीका होता है। फलस्वरूप देखनेवाला यही समझता है कि वाद-विवाद बड़े जोरों पर चल रहा है।
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