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तिब्बत की एक प्रख्यात गुम्बा सारा वातावरण पूर्ण शान्ति और धार्मिक पूत-भावनाओं से चित्त को पूरित कर रहा था। इन लामाओं के चरित्र के अधूरेपन के विषय में कोई कैसे भी विचार भले ही बना ले, लेकिन इसमें सन्देह नहीं कि एकत्र हुई सारी सभा का प्रभाव हृदय पर बड़ा गहरा पड़ता था। ___ अब सब लोग अपने अपने स्थान पर चुपचाप पल्थी मारकर बैठ गये। बड़े लामा और उच्च पदाधिकारी अपने सिंहासनों पर शोभित हुए। सिंहासनों की ऊँचाई उनके ओहदे के अनुसार बड़ी छोटी थी। छोटे धार्मिक लामा लम्बी-लम्बी बेञ्चों पर, जो जमीन से थोड़ी ही ऊँची थी, बैठे। गम्भीर और धीमे स्वर में धीरे-धीरे मन्त्र-पाठ प्रारम्भ हुश्रा। घण्टे, ग्यालिङ और रैगदोज छोटे-छोटे और बड़े ढोल और दमामे भी साथ-साथ बजते जाते थे। । साधारण चेलों की मण्डली बेञ्चों के एकदम पीछे दरवाज के पास बैठी हुई थी। ये लोग सबसे अधिक चुपचाप थे। मजाल क्या कि किसी की साँस जोर से निकल जाय। वे भली भाँति जानते थे कि सदा सावधान रहनेवाला चोस्तिम्पा फौरन बात करनेवालों या थोड़ा भी चकबक करनेवालों को फौरन ताड़ जाता है। उसके और उसके ऊँचे आसन के पास लटकते हुए कोड़े और छड़ियों के भय के मारे उनकी थोड़ी भी कानाफूसी करने की हिम्मत न होती थी।
इस तरह का दण्ड छोटे-छोटे बच्चों के लिए निर्धारित नहीं है। बड़े और समझदार मूों को ही केवल गुम्बा के चोस्तिम्पा का आतङ्क हर क्षण बना रहता है।
* प्रत्येक विहार में एक चोस्तिम्पा होता है जिसका कर्त्तव्य यह होता है कि पूजा के समय अनुचित व्यवहार करनेवालों को उचित दण्ड देकर शान्ति रक्खे।
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